यथा दृष्टि तथा श्रृष्टि का क्या अर्थ हैं | Yatha Drishti Tatha Shrishti Ka Kya Arth Hain

नमस्कार दोस्तों, Allhindi.co.in में आप सभी का स्वागत हैं| आपने कभी न कभी एक श्लोक को सुना होगा यथा दृष्टि तथा श्रृष्टि| क्या आप इसके अर्थ को जानते हैं आप में अधिकतर का जवाब ना में होगा| आज की इस लेख में आप जानेंगे की यथा दृष्टि तथा श्रृष्टि का क्या अर्थ हैं (Yatha Drishti Tatha Shrishti Ka Kya Arth Hain)| आइये इस लेख की शुरुआत करते हैं|

यथा दृष्टि तथा श्रृष्टि का क्या अर्थ हैं | [Yatha Drishti Tatha Shrishti Ka Kya Arth Hain]

यथा दृष्टि तथा श्रृष्टि का क्या अर्थ हैं | Yatha Drishti Tatha Shrishti Ka Kya Arth Hain

हम जिस प्रकार की नजर या सोच के साथ इस दुनिया को देखते हैं ठीक उसी प्रकार से हमें वह दुनिया दिखती है। यथा दृष्टि तथा सृष्टि का अर्थ है कि मनुष्य जिस प्रकार से सोचता है; ठीक उसी प्रकार से उसकी सोच निर्मित होती है और जिस प्रकार से उसकी सोच निर्मित होती है वह उसी प्रकार से दुनिया को देखता है। 

जिस प्रकार से कोई व्यक्ति अलग रंगों का चश्मा पहन लेने से उसे पूरी दुनिया उस चश्मे के रंग के कारण अलग दिखाई देने लगती है; ठीक उसी प्रकार व्यक्ति की जिस प्रकार की सोच होती है वह उसी प्रकार से दूसरों को देखता है या दूसरे की परिस्थितियों को समझ पाता है। यथा दृष्टि तथा सृष्टि से बहुत सारी कहानियां जोड़ी नहीं है इस श्लोक से महाभारत की कथा भी बहुत ही प्रसिद्ध है। जो कि आगे इस लेख में आपको पढ़ने को मिलेगा। आइये इस कहानी के बारे में थोड़ा सा जानते हैं और यह समझने की कोशिश करते हैं कि किस प्रकार से इस श्लोक को हम अपने जीवन में उतार सकते हैं।

यथा दृष्टि तथा श्रृष्टि से जुड़ी कहानियाँ |

एक बार की बात है गुरु आचार्य द्रोण ने सभी पांडव की वैचारिक प्रगति तथा व्यावहारिकता के बारे में परीक्षा लेने की सोची। गुरु आचार्य को यह नहीं समझ में आ रहा था कि उनके व्यावहारिकता की परीक्षा किस प्रकार से लें। कुछ समय बाद उन्हें एक उपाय सूझा।

उन्होंने दुर्योधन को अपने पास बुलाया और कहां तुम समाज में एक अच्छे आदमी की परख करके उसे मेरे सामने लेकर आओ दुर्योधन अपने गुरु की आज्ञा लेकर वहां से निकल गया और अच्छे आदमी की तलाश करने लगा। कुछ कुछ दिनों बाद दुर्योधन अपने गुरु के पास आकर कहा कि मैंने कई नगरों गांव का चक्कर लगाया लेकिन मुझे कोई भी अच्छा आदमी नहीं मिला।

फिर उन्होंने राजकुमार युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और कहा कि इस समाज में कोई बुरा आदमी ढूंढ कर लाओ। युधिष्ठिर ने अपने गुरु की आज्ञा लेकर बुरे आदमी की तलाश करने लगा। युधिष्ठिर ने भी कई नगरों का ही गांव का चक्कर लगाया।

लेकिन उसे भी कोई बुरा आदमी नहीं मिला वह वापस अपने गुरु के पास आकर बोला गुरुवर मुझे इस समाज में कोई भी बुरा आदमी नहीं मिला। यह बात जब आचार्य द्रोण के शिष्यों ने सुनी तो वह अचंभित रह गया ऐसा कैसे हो सकता है कि इस समाज में दोनों राजकुमारों को ना ही कोई बुरा व्यक्ति मिला ना ही कोई अच्छा व्यक्ति मिला।

इस पर कुछ शिष्यों ने आज आचार्य से प्रश्न भी किया कि यह कैसे संभव है। आचार्य द्रोण मुस्कुराते हुए बोले वक्त जो व्यक्ति जैसा दिखता है या जैसा सोचता है उसे दुनिया में वैसे ही लोग दिखाई पड़ते हैं। दुर्योधन को इस वजह से अच्छा व्यक्ति नहीं मिला क्योंकि उसकी सोच अच्छी नहीं है वह अच्छी चीजों में भी बुराई ढूंढ लेता है।

ठीक उसी प्रकार युधिष्ठिर तो कोई भी बुरा व्यक्ति इसलिए नहीं मिला क्योंकि वह हर बुरे व्यक्ति में भी कुछ अच्छाइयां ढूंढ लेता है तो यह सारा खेल हमारी सोच का है और हमारे देखने के नजरिए को पर है अभी हम जैसा देखेंगे वैसे ही हमें लोग दिखाई देंगे।

इस लेख के बारे में

इस लेख में आपने जाना की यथा दृष्टि तथा श्रृष्टि का क्या अर्थ हैं [Yatha Drishti Tatha Shrishti Ka Kya Arth Hain]| उम्मीद करता हूँ की आपको इस श्लोक का अर्थ पता चल गया होगा। यदि आपको इस श्लोक से जुडी कोई भी कहानी आपको भी पता हैं तो आप नीचे कमेंट कर सकते हैं।

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