[B.A. 1st Year ]विद्यानिवास मिश्र की भाषा शैली । Vidya Nivas Mishra Ki Bhasha Shailee

प्रिय पाठक allhindi.co.in के एक नए लेख में आप सभी का स्वागत है। आज के इस लेख में आप विद्यानिवास मिश्र की भाषा शैली [ Vidya Nivas Mishra Ki Bhasha Shailee ]  जानने वाले हैं। यह प्रश्न BA 1st year के बच्चों की परीक्षाओ में अक्सर पूछे जाते हैं। इस लेख जिस प्रकार से हैडिंग के साथ लिखा गया हैं। उस प्रकार से आप परीक्षाओ में भी लिख सकते हैं।

विद्यानिवास मिश्र की भाषा शैली । Vidya Nivas Mishra Ki Bhasha Shailee

विद्यानिवास मिश्र की भाषा शैली | Vidya Nivas Mishra Ki Bhasha Shailee

पंडित विद्यानिवास मिश्र का हिन्दी के निबन्धकारों में महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता मौलिकता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के बाद ललित निबन्धकारों में पंडित जी का ही नाम आदर के साथ लिया जाता है। आप संस्कृति एवं लोक संस्कृति के कुशल मर्मज्ञ हैं। आपके ‘छितवन की संह’, ‘हल्दी दूब’, ‘कदम की फूली डाल’, ‘तुम चन्दन हम पानी, ‘बनजारा मन’ तथा ‘मैंने सिल पहुंचाई’ आदि निबन्ध संग्रह है।

भाषागत विशेषताएँ

पंडित जी संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित है। आप आचार्य द्विवेदी की भांति संस्कृत से हिन्दी में आये। आप प्राचीन भारतीय साहित्य एवं संस्कृति के मर्मज्ञ एवं आध्येता है।

आपके निबन्धों में तत्सम शब्दों की बहुलता है। आपकी भाषा नीति अत्यन्त उदार है। आपने बिना कसी संकोच के अन्य भाषा के शदों को ग्रहण किया है। आप निबन्धों में आञ्चलिक शब्दों की छटा देखते बनती है। आपने अपने निबन्धों में संस्कृत, उर्दू फारसी, तथा अंग्रेजी के शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है।

संस्कृत शब्द

पंडित जी संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान हैं। उनके निबन्धों में संस्कृत के शब्दों का प्रयोग स्वाभाविक है। उन्होंने अपने निबन्धों में कार्यक्रम, संकल्प, प्रतिष्ठित, अशेष, उत्कर्ष, समष्टि, चैतन्य, वर्चस्व आद्याशक्ति आदि संस्कृत शब्दों का प्रयोग किया है।

उर्दू-फारसी के शब्द

मिश्र जी ने संस्कृत शब्दों के साथ-साथ उर्दू और फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। यथा बेहद खास वजह तबीयत, बरकरार, कमरबन्द, कीमत, अदा, मासूम, बियावन, मेहमान आदि।

देशज अथवा लोक भाषा के शब्द

निबन्धों में देशज शब्दों के प्रयोग से उनकी चारुता बढ़ जाती है। पंडित जी ने देशज शब्दों का प्रयोग खूब किया है। उदाहरणार्थ निम्न लिखित शब्दों को देखा जा सकता है-आसरा, बिसूरना, पहरुआ, बदा, अंजोर, निहारती, ढरकायें, बचे खुचे, उजास, जतसार, अमचूर, गगरी आदि।

लोकोक्तियाँ एवं मुहावरे

पंडित विद्यानिवास मिश्र जी ने अपने निबन्धों में लोकोक्तियों एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया है। इनके प्रयोग से निबन्धों के सौन्दर्य की अभिवृद्धि हुई है। इससे अर्थवत्ता भी बढ़ गयी है। पठित निबन्धों में प्रयुक्त मुहावरे मन रखना, संकल्प बोलना, राह जोहना, चिरई का पूत न होना, धोबी की मुठरी, मुंह निहारना आदि हैं।

विद्यानिवास मिश्र की भाषा शैली

शैली पं० विद्यानिवास मिश्र आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की परम्परा के निबन्धकार हैं। आपकी शैली आकर्षक, सहज, स्वाभाविक, चमत्कारिक, व्यंग्यपूर्ण, प्रतीकात्मक, सामासिक तर्कपूर्ण और भावात्मक है। पंडित जी की प्रमुख निबन्ध शैली निम्नलिखित है-

  1. भावात्मक शैली
  2. प्रतीकात्मक शैली
  3. व्यंग्यात्मक शैली
  4. आत्मपरक शैली
  5. प्रश्नात्मक शैली
  6. उद्धरण शैली

भावात्मक शैली

पंडित जी की यह एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण शैली है। इस शैली के प्रयोग से आपके निबन्धों में काव्यात्मकता आ गयी है। ‘मेरे राम का मुकुट भींग रहा है निबन्ध से एक उदाहरण द्रष्टव्य है-‘ सीता वन्य पशुओं से घिरी हुई विजन में सोचती है-प्रसव की पीड़ा हो रही है, कौन इस बेला में सहारा देगा, कौन प्रसव के समय प्रकाश दिखलायेगा, कौन मुझे संभालेगा, कौन जन्म के गीत गायेगा ? सीता जंगल की सूखी लकड़ी बिनती हैं, जलाकर अंजोर करती है। और जुड़वा बच्चों का मुँह निहारती है।”

व्यंगात्मक शैली

इस शैली में पं० विद्यानिवास मिश्र जी सिद्ध हस्त हैं। इससे निबन्धों की प्रभावोत्पादकता बढ़ गयी है। एक उदाहरण प्रस्तुत है-‘ पर घास की महिमा अपरम्पार है, उसे तो आज वन्य पशुओं का राजकीय संरक्षित क्षेत्र बनाया जा रहा है, नीचे ढकी हुई रात तो सैलानियों के घूमने के लिए, वन्य पशुओं के प्रदर्शन के लिए, फोटो खिचने वालों की चमकती छवि, यात्राओं के लिए बहुत ही रमणीक स्थली बनायी जा रही है। उस राह पर तुलसी और उनके मानक के नाम पर बड़े-2 तमाशे होंगे, फुलझड़ियां दर्गेगी, सैर-सपाटे होंगे, पर वह राह ढकी ही रह जायेगी।

प्रतीकात्मक शैली

मिश्र जी ने अपने निबन्धों में इस शैली का प्रयोग यत्र-तत्र किया है। यह शैली अत्यन्त आकर्षक है। एक उदाहरण देखने लायक है- “जानती हूं, इन्हीं जंगलों के आस-पास किसी टेकड़ी पर राम की पर्ण कुटी है, पर इन उलझाने वाले शब्दों के अलावा मेरे पास कोई राह नहीं। “

आत्मपरक शैली

ललित निबन्धकारों की यह प्रमुख शैली है। आपके निम्बन्धों में इस शैली के सर्वत्र दर्शन होते हैं। ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’ शीर्षक निबन्ध में इस शैली को देखा जा सकता है। मिश्र जी कहते हैं कुर्सी पर पड़े-पड़े यह सब सोचते -2 चार बजने को आया, इतने में दरवाजे पर हल्की सी दस्तक पड़ी, चिरंजीवी निचलों मंजिल के ऊपर नहीं चढ़े।…. अपने लड़के के घर लौट आये।”

उद्धरण शैली

अपनी बात को पुष्ट करने के लिए निबन्धकार यदा-कदा उदाहरण भी देता चलता है। ये उद्धरण महान व्यक्तियों के कथन हो सकते हैं। पठित निबन्ध में मिश्र जी कहते हैं-” भवभूति के शब्दों में पहचान की बस एक निशानी बच्ची रहती है। दूर ऊँचे खड़े तटस्थ पहाड़ राम मुकुट में जड़े हीरों की चमक के सैकड़ों शिखर, एकदम कठोर तीखे और निर्मम-‘पुरा यत्र स्रोतः पूलिन मधुना तत्र सरितां’

प्रश्नात्मक शैली

इस शैली में निबन्धकार स्वयं प्रश्न प्रस्तुत करता है और स्वयं ही उसका उत्तर भी देता है। मिश्र जी ने अपने प्रत्येक निबन्धों में इस शैली का प्रयोग किया है। यथा-क्या बात है कि मुकुट अभी भी उनके माथे पर बँधा है, और उसकी के भीगने की इतनी चिन्ता है ? क्या बात है कि आज भी काशी की रामलीला आरम्भ होने के पूर्व एक निश्चित मुहूर्त में मुकुट की ही पूजा सबसे पहले की जाती है……कहीं न कहीं इन सब में एक संगति होनी चाहिए।”

उपसंहार-

पंडित विद्यानिवास मिश्र के निबन्धकार व्यक्तित्व के सम्बन्ध में डॉ० रामचन्द्र तिवारी का कथन है-“आपके प्रारम्भिक निबन्धों में धरती की गंध तथा लोक साहित्य की आर्द्रता एवं मांगलिकता व्यक्ि प्रधान थी। रूढ़ियों की प्रतिक्षोभ सी व्यंजना लक्षित होती है।”

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