दोस्तो क्या आप जानते हैं मानवपूजी क्या हैं ? मानवपूंजी की आवश्यकता क्यों पड़ी। मानव संसाधन का महत्व क्या हैं इन सभी के बारे में अच्छे से जानेंगे।
ये शायद मनुष्य के ज्ञान-को एकत्र करने की और उस ज्ञान को अलग अलग जगह पहुचाने की क्षमताएँ ही हैं, जो मनुष्य बातचीत, लोकगीत और बड़े-बड़े व्याख्यानों के माध्यम से करता आ रहा है। मनुष्य ने यह शीघ्र जान लिया कि हमें कार्याें को कुशलतापूर्वक करने के लिए अच्छे प्रशिक्षण तथा कौशल की आवश्यकता है।
हम जानते हैं कि किसी शिक्षित व्यक्ति के श्रम-कौशल, अशिक्षित व्यक्ति से अधिक होते हैं। इसी कारण से पहला, दूसरे की अपेक्षा, अधिक आय का सृजन करता है और आर्थिक समृद्धि में उसका योगदान क्रमशः अधिक होता है।
शिक्षा पाने का प्रयास केवल उपार्जन क्षमता बढ़ाने के लिए नहीं किया जाता बल्कि उसके और भी अधिक मूल्यवान लाभ हैं। शिक्षा लोगों को उच्चतम सामाजिक स्थिति और गौरव प्रदान करती है। शिक्षित श्रम शक्ति की उपलब्धता नयी प्रौद्योगिकी को अपनाने में भी सहायक होती है।
उत्पत्ति या उत्पादन के साधन: उत्पत्ति या उत्पादन के मुख्यत: पांच साधन माने जाते हैं- भूमि, पूंजी, संगठन, साहस एवम् श्रम। इन इन साधनों में से सबसे सक्रिय एवं गतिमान साधन श्रम (मानवीय पूंजी) है। क्योंकि श्रम के बिना उत्पादन की कल्पना करना भी व्यर्थ है। अर्थात् श्रम (मानवीय पूँजी) के बिना सभी साधन केवल साधन रह जाते हैं, उत्पादन नहीं बन पाते। अतः मानवीय श्रम किसी भी देश के आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण तथा सक्रिय साधन है ।
Contents
- 1 मानव पूंजी का अर्थ ( Manavpoonji ka Arth)
- 2 मानव पूंजी क्या हैं? ( Mananvpoonji kya hai )
- 3 मानव पूंजी की आवश्यकता (Manavpoonji ki Aavshyakta )
- 4 मानव पूंजी और मानव विकास ( Manav Poonji Aur Manav Vikas )
- 5 मानव साधन तथा आर्थिक विकास ( Manav Sadhan Tatha Aarthik Vikas )
- 6 भारत में निर्माण की स्थिति ( Bharat Me Manav Poonji Nirmaan ki sthiti )
- 7 भारत में मानव पूंजी निर्माण में बाधाएं ( Bharat Mein Manav Poonji Nirmaan Mein Badhayen )
- 8 मानव पूंजी निर्माण के घटक/ स्रोत ( Manav Poonji Nirmaan Ke Ghatak / Shrot)
- 9 मानव पूँजी निर्माण के स्रोत ( Manav Poonji Nirman ke strot )
- 10 शिक्षा:
- 11 स्वास्थ्य:
- 12 प्रशिक्षण:
- 13 प्रवसन:
- 14 बाह्य स्रोत (देश की सीमा से बाहर)
- 15 मानव पूंजी और आर्थिक संवृद्धि
- 16 भौतिक पूंजी तथा मानव पूंजी में अन्तर
- 17 शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
- 18 भविष्य की संभावनाएँ
- 19 निष्कर्ष:
मानवीय साधनों से आशय- उत्पादन के लिए मानवीय संसाधनों अर्थात् श्रम की कार्यकुशलता तथा योग्यता से है।
मानव पूंजी क्या हैं? ( Mananvpoonji kya hai )
कार्यकुशलता तथा उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के लिए मानवीय संसाधनों में किया गया निवेश ही, मानवीय पूँजी कहलाता है। जैसे- शिक्षा एवं प्रशिक्षण, स्वास्थ्य आदि।
प्रो. हर्बिसन के अनुसार- “मानवीय पूंजी निर्माण वह क्रिया है जिसके द्वारा देशवासियों के ज्ञान-कौशल तथा उत्पादन क्षमता की वृद्धि होती है।
- जिस प्रकार एक देश अपने भूमि जैसे भौतिक संसाधनाें को कारखानाें जैसी भौतिक पूँजी में परिवर्तित कर सकता है, उसी प्रकार वह अपने छात्र रूपी मानव संसाधनाें को नर्स, किसान, अध्यापक, अभियंता और डॉक्टर जैसी मानव पूँजी में भी परिवर्तित कर सकता है। अतः मानवीय पूँजी का सम्बन्ध प्रशिक्षित व कुशल श्रम शक्ति से है।
- समाज को सबसे पहले पर्याप्त मात्रा में मानव पूँजी की ज़रूरत है, जो एेसे योग्य व्यक्तियोें के रूप में अधिक होती है जो पहले स्वयं प्रशिक्षित हो चुके हों, और प्रोफ़ेसराें आदि के रूप में कार्य करने योग्य हों। तकनीकी दृष्टि से प्रशिक्षित व कुशल श्रमशक्ति ही विकसित देशों के आर्थिक विकास का आधार रही है।
- दूसरे शब्दाें में, हमें अन्य मानव पूँजी जैसे – नर्स, किसान, अध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर आदि को तैयार करने के लिए शिक्षकाें, प्रशिक्षकाें के रूप में बेहतर मानव पूँजी की आवश्यकता होती है। वास्तव में किसी भी अर्थव्यवस्था में भौतिक पूँजी का निर्माण बड़ी सीमा तक मानवीय पूंजी के निर्माण पर निर्भर होता है। इसका अर्थ है कि हमें मानव संसाधनाें को मानव पूँजी के रूप में परिवर्तित करने के लिए मानव पूँजी निवेश करने की भी आवश्यकता है।
- मानवीय संसाधनों के सहयोग के बिना उत्पादन के अन्य सभी साधन केवल साधन रह जाते हैं। उत्पादन नहीं बन पाते। अतः अर्थव्यवस्था का वास्तविक आधार- मानव पूँजी / जनशक्ति / मानव संसाधन है।
- मानव पूँजी ही प्राथमिक संसाधनों का विदोहन तथा प्रयोग कर सकता है।
मानव संसाधन का महत्व (Manav Sansadhan ka Mahatva)
उत्पादन का सक्रिय साधन: जनशक्ति जनसंख्या का वह भाग होता है, जो आर्थिक रूप से सक्रिय होता है। अतः इसका विनियोग करके उत्पादन श्रम को बढ़ाया जा सकता है।
जनसंख्या व श्रम: अधिक जनसंख्या का परिणाम अधिक कार्यशील जनसंख्या है फलस्वरूप राष्ट्र को आर्थिक विकास हेतु पर्याप्त श्रमशक्ति उपलब्ध हो जाती है। जैसे- चीन
मांग का निर्माण: अधिक जनसंख्या के कारण अधिक प्रभावपूर्ण माँग का जन्म होता है। किसी राष्ट्र के विकास के लिए अधिक प्रभावपूर्ण माँग विकास की गति को तीव्र करने वाली ही होती है।
शोध, अनुसंधान व आविष्कार: अधिक जनसंख्या अनेक समस्याओं को जन्म देती है। इन समस्याओं को हल करने के लिए अनेक प्रकार के शोध कार्य निरन्तर जारी रहते हैं, जो कि अनेक आविष्कारों के कारण बनते हैं।
कौशल निर्माण को बढ़ावा: जनसंख्या वृद्धि ज्ञान विस्तार, वैज्ञानिकों, आविष्कारकों, प्रबन्धकों आदि की संख्या बढ़ाती है जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
मानव विकास इस विचार पर आधारित है कि शिक्षा और स्वास्थ्य मानव कल्याण के अभिन्न अंग हैं, क्योंकि जब लोगों में पढ़ने-लिखने तथा सुदीर्घ स्वस्थ जीवन यापन की क्षमता आती है, तभी वह एेसे अन्य चयन करने में सक्षम हो पाते हैं जिन्हें वे महत्वपूर्ण मानते हैं।
- किसी भी देश के आर्थिक विकास में मानवीय साधनों का अपना एक विशेष महत्व है।
- मानव उत्पादन का केवल एक प्रमुख साधन ही नहीं अपितु साध्य भी है।
- आर्थिक विकास व मानवीय साधन एक-दूसरे के पूरक हैं।
- आर्थिक विकास का प्रमुख उद्देश्य मानव कल्याण में वृद्धि करना है, जबकि आर्थिक विकास स्वयं मानवीय प्रयत्नों का परिणाम है।
यदि कोई राष्ट्र मानवीय साधनों का विकास करने में असमर्थ है तो दूसरे क्षेत्र में भी अधिक विकास नहीं कर सकता है।
जनशक्ति: जनशक्ति में हम जनसंख्या के उस भाग को शामिल करते हैं जो आर्थिक रूप से सक्रिय हो या सक्रिय होने योग्य हो। जनशक्ति किसी देश के आर्थिक विकास का वह महत्वपूर्ण तत्व है, जिसके सक्रिय होने पर पूँजी निर्माण होता है।
किसी देश की जनशक्ति में हम उन सब व्यक्तियों को सम्मिलित करते हैं, जो काम में लगे हो या काम करने के योग्य और इच्छुक हो। सम्भवत: कुछ व्यक्तियों को योग्यता और इच्छानुसार कार्य नहीं मिल पा रहा है और वे बेकार हैं।, किन्तु उचित कार्य मिलने पर वे भी कार्य करने को तैयार है, इसलिए इन्हें भी देश की जनशक्ति में शामिल किया जाता है।
इसे मानव शक्ति, कार्यशील जनसंख्या, श्रम शक्ति आदि नामों से जाने जाते हैं।
निर्माण: मानव संसाधन को पूँजी में बदलने की क्रिया मानव पूँजी निर्माण कहलाती है।
मानव पूँजी निर्माण शिक्षा, स्वास्थ्य, कार्य स्थल प्रशिक्षण, प्रवसन और सूचना निवेश का परिणाम है। इनमें से शिक्षा और स्वास्थ्य मानव पूँजी निर्माण के दो सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
(1) भारत में शिक्षा क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य स्तर पर शिक्षा मंत्रालय तथा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् आती हैं।
(2) स्वास्थ्य क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य स्तरों पर स्वास्थ्य राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग मंत्रालय और विभिन्न संस्थाओं के स्वास्थ्य विभाग तथा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् आदि कार्य कर रही हैं।
- बढ़ती जनसंख्या का दबाव
- कुशल प्रशिक्षण का अभाव
- स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
- अज्ञानता/शिक्षा का अभाव
- कौशल का विदेशों में पलायन (प्रतिभा पलायन)
वे सारे क्रियाकलाप जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, तकनीकी प्रशिक्षण आदि जो इसकी योगयता को बढ़ाने में काम आते हैं, वे सारे मानव पूँजी निर्माण के घटक/ स्रोत कहलाते हैं।
- आन्तरिक स्रोत (देश की भौगोलिक सीमा के भीतर)
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- प्रशिक्षण
- प्रवसन
शिक्षा:
शिक्षा: यह मानव को कुशल बनाने का सबसे महत्वपूर्ण खोज है। शिक्षा व्यक्ति को और अधिक कुशल व योग्य बनाती है। शिक्षा में निवेश को मानव पूँजी का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। यह सामाजिक जागरूकता पैदा करती है।
स्वास्थ्य:
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। बिना अच्छे स्वास्थ्य के कोई भी काम सही तरीके से नहीं किया जा सकता। प्रतिषेधी आयुर्विज्ञान (टीकाकरण), चिकित्सीय आयुर्विज्ञान (बीमारियोें के क्रम मेें उसकी चिकित्सा) तथा सामाजिक आयुर्विज्ञान (स्वास्थ्य संबंधी साक्षरता या ज्ञान का प्रसार) और इनके साथ-साथ स्वच्छ पेय जल का प्रावधान आदि स्वास्थ्य व्यय के विभिन्न रूप हैं। शिक्षा की भाँति ही स्वास्थ्य को भी किसी व्यक्ति के साथ-साथ देश के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण माना जाता है।
प्रशिक्षण:
एक व्यक्ति की योग्यता को बनाए रखने के लिए उसे समय-समय पर जरूरत अनुसार प्रशिक्षण देना बेहद जरूरी होता है, नहीं तो उसकी कार्यकुशलता में कमी आने लगती है। आज हर तरह के रोजगार में कम्पनियाँ कारीगरों को प्रशिक्षण देती रहती है।
सरकार द्वारा दिए जा रहे तकनीकी प्रशिक्षण का यही कारण है कि उन्हें बाजार के अनुरूप उसकी योग्यता में वृद्धि किया जा सके।
प्रवसन:
व्यक्ति अपने मूल स्थान की आय से अधिक आय वाले रोजगार की तलाश में प्रवसन/पलायन करते हैं। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर प्रवसन मुख्यतः गाँवों में बेराजगारी के कारण ही होता है। तकनीकी शिक्षा संपन्न अभियंता, डॉक्टर आदि भी अच्छे वेतनमानों की अपेक्षा में दूसरे देशों में चले जाते हैं। अतः प्रवसन पर व्यय भी मानवीय पूँजी निर्माण का स्रोत है।
बाह्य स्रोत (देश की सीमा से बाहर)
- पहला तरीका व्यक्ति विदेशो/जगहों पर जाकर अपनी योगयता को बढ़ाये।
- दूसरा तरीका विदेशों से कुशल प्रशिक्षक को बुलाकर अपने यहाँ के लोगों को प्रशिक्षण दिया जाये।
मानव पूंजी और आर्थिक संवृद्धि
एक शिक्षित व्यक्ति का श्रम-कौशल अशिक्षित की अपेक्षा अधिक होता है। इसी कारण वह अपेक्षाकृत अधिक आय अर्जित कर पाता है। कुशल तथा प्रशिक्षित श्रमिकों की संख्या में वृद्धि होगी। तो साथ-साथ और भी उत्तम मानव कौशल जैसे- डॉक्टर, शिक्षक, इंजिनियर और व्यावसायीयों की संख्या में हमारे आस-पास वृद्धि होगी और वे आर्थिक संवृद्धि में सहायक होंगे।
मानव पूंजी का निर्माण आर्थिक संवृद्धि की प्रक्रिया को गति प्रदान करता है। आर्थिक संवृद्धि का अर्थ देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि से होता है तो फिर स्वाभाविक ही है कि किसी शिक्षित व्यक्ति का योगदान अशिक्षित की तुलना में कहीं अधिक होगा।
मानव पूंजी तथा आर्थिक संवृद्धि एक-दूसरे के पूरक होते हैं। भारत ने तो बहुत पहले आर्थिक संवृद्धि में मानव पूँजी के महत्व को समझ लिया था। सातवीं पंचवर्षीय योजना में कहा गया है– “एक विशाल जनसंख्या वाले देश में तो विशेष रूप से मानव संसाधनों (मानव पूँजी) के विकास को आर्थिक विकास की युक्ति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान देना ही होगा। उचित शिक्षण प्रशिक्षण पा कर एक विशाल जनसंख्या अपने आप में आर्थिक संवृद्धि को बढ़ाने वाली परिसंपत्ति बन जायेगी। साथ ही यह वांछित दिशा में सामाजिक परिवर्तन भी सुनिश्चित कर देगी।
मानव पूंजी निर्माण का स्तर ऊँचा है, तो आर्थिक संवृद्धि का स्तर भी ऊँचा होगा। मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। अर्थात् एक ओर जहाँ प्रवाहित उच्च आय उच्च स्तर पर मानव पूँजी के सृजन का कारण बन सकती है तो दूसरी ओर उच्च स्तर पर मानव पूँजी निर्माण से आय की सृंवद्धि में सहायता मिल सकती है।
मानव पूँजी का निर्माण शिक्षा, स्वास्थ्य तथा सूचना आदि पर व्यय से होता है। इन तथ्यों पर व्यय करने से उत्पादकता में वृद्धि होती है। जिससे आधुनिकीकरण में वृद्धि होती है और राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय बढ़ने लगती है परिणामतः इनसे आर्थिक संवृद्धि तीव्रता से होती जाती है।
ड्राफ्ट नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2019 में कहा गया है कि ‘‘भारत 2030-2032 तक संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के साथ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी जगह बना सकने का इरादा रखता है। भारत अब छठीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हम पाँच-सात वर्षों में पाँच ट्रिलियन तक पहुँच जाएँगे।
क्या हम अपने भारत देश को इस आत्मविश्वास के साथ अमेरिका और चीन के समक्ष विश्व की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पहुँचा सकते हैं और आगामी वर्षों में इस स्थान को बनाये रखने में सक्षम हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह आवश्यक है कि मज़बूत शिक्षा प्रणाली पर आधारित ज्ञानवर्धक समाज का गठन हो, जिसमें ज्ञान की मागों, प्रौद्योगिकीय और समाज के काम करने के तरीकों में बदलाव के तत्वों का समावेश हो।
मानव पूँजी सभी पूँजीयों की जननी है- अर्थात् संसार की सभी पूँजियों का उपयोग मानव ही करता है ओर इन पूँजियों का निर्माण भी मानव ही करता है मानव पूँजी में वृद्धि से भौतिक पूँजियों की उत्पादकता में वृद्धि होती है जिससे विकास की गति त्वरित होती है। एक मनुष्य चाहे तो वह सभी प्रकार की पूँजियों को प्राप्त कर सकता है।
भौतिक पूंजी तथा मानव पूंजी में अन्तर
भौतिक पूंजी | मानव पूंजी |
दृश्य: भौतिक पूँजी दृश्य होती है। | मानव पूँजी अदृश्य होती है। |
विक्रय: भौतिक पूँजी को बेचा जा सकता है। | मानव पूँजी को नहीं बेचा जा सकता।। |
पृथक: भौतिक पूँजी को स्वामी से अलग किया जा सकता है। | जबकि मानव पूँजी को उसके स्वामी से अलग नहीं कि या जा सकता। |
लाभान्वित: भौतिक पूँजी से सिर्फ उसका स्वामी ही लाभान्वित होता है। | जबकि मानव पूंजी से उसका स्वामी ही नहीं वरन सारा समाज लाभान्वित होता है। |
क्रिया: भौतिक पूँजी निर्माण एक आर्थिक व तकनीकी प्रक्रिया है। | जबकि मानव पूँजी निर्माण एक सामाजिक प्रक्रिया है। |
शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
- 1952 से 2014 के बीच कुल सरकारी व्यय में शिक्षा पर व्यय 7.92 प्रतिशत से बढ़कर 15.7 प्रतिशत हो गया है।
- इसी प्रकार सकल घरेलू उत्पाद में इसका प्रतिशत 0.64 से बढ़कर 4.13 प्रतिशत हो गया है।
- कुल शिक्षा व्यय का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्राथमिक शिक्षा पर खर्च होता है। उच्चतर/तृतीयक शैक्षिक संस्थाओं (उच्च शिक्षा के संस्थानों जैसे- महाविद्यालयों, बहुतकनीकी संस्थानों और विश्वविद्यालयों आदि) पर होने वाला व्यय सबसे कम है।
- भारत सरकार ने सभी केंन्द्रीय करों पर 2 प्रतिशत “शिक्षा उपकार” लगाना भी प्रारंभ किया है। शिक्षा उपकार से प्राप्त राजस्व को प्राथमिक शिक्षा पर व्यय करने हेतु सुरक्षित रखा है।
भविष्य की संभावनाएँ
सब के लिए शिक्षा–अभी भी एक सपना है। यद्यपि वयस्क और युवा साक्षरता दराें में सुधार हो रहा है, किंतु आज भी देश में निरक्षराें की संख्या उतनी ही है जितनी स्वाधीनता के समय भारत की जनसंख्या थी।
लिंग समानता पहले से बेहतर है। अब साक्षरता में पुरुषों और महिलाआें के बीच का अंतर कम हो रहा है जो लिंग-समानता की दिशा में एक सकारात्मक विकास है।
उच्च शिक्षा लेने वालों की कमी है। भारत में शिक्षा का पिरामिड बहुत ही नुकीला है, जो दर्शाता है कि उच्चतर शिक्षा स्तर तक बहुत कम लोग पहुँच पाते हैं। यही नहीं, शिक्षित युवाआें की बेरोजगारी दर भी उच्चतम है।
निष्कर्ष:
भारत के पास वैज्ञानिक और तकनीकी जन-शक्ति है। समय की माँग है कि गुणात्मकता में सुधार करें तथा इस प्रकार की परिस्थितियाें का भी निर्माण करें, कि इन्हें भारत में पर्याप्त रूप से प्रयुक्त किया जा सके।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ समाज के सभी वर्गों को सुनिश्चित रूप से सुलभ करायी जानी चाहिए, ताकि आर्थिक संवृद्धि के साथ-साथ समता की प्राप्ति भी हो सके।