[B.A. 1st year] Ekanki Ke Tatva | एकांकी के स्वरूप, परिभाषा एवं तत्वों का विवेचन

प्रिय पाठक! Allhindi के इस नये लेख में आपका स्वागत हैं आज की इस लेख में आपएकांकी के तत्व [ Ekanki Ke Tatva] को जानेंगे। इस लेख में आप एकांकी के स्वरूप, एकांकी की परिभाषा एवं एकांकी के तत्वों के बारे में पढेंगे। एकांकी से जुड़े बहुत सारे प्रश्न आपको परीक्षाओ में पूछे जाते हैं इस लेख में आपको एकांकी के परिभाषा तथा तत्व को जानेंगे।

[B.A. 1st year] Ekanki Ke Tatva | एकांकी के स्वरूप, परिभाषा एवं तत्वों का विवेचन

एकांकी का स्वरूप [ Ekanki Ka Swaroop ]

एकांकी का स्वरूप-एकांकी आधुनिक काल में विकसित एक महत्वपूर्ण गद्य विधा है। आधुनिक जीवन में समय के कमी की समस्या ने इसके विकास में विशेष सहयोग दिया है। एकांकी नाटक की परिभाषा विद्वानों ने अनेक प्रकार से की है। उनके सारांश रूप में हम कह सकते हैं कि-‘एकांकी नाटक एक अंक वाला छोटा नाटक होता है। उसकी सम्पूर्णकथा एक ही अंक में पूर्ण और समाप्त हो जाती हैं। एकांकी एक ऐसी संक्षिप्त नाट्य रचना है, जिसमें गिने चुने पात्रों के माध्यम से कोई विशिष्ट जीवन सत्य एकाग्रतीव्रता के साथ अभिव्यक्त होता है। उसमें व्यापक मानव जीवन का चित्रण नहीं होता, अपितु मनुष्य के जीवन अथवा चरित्र का कोई एक ही अंग अथवा पहलू चित्रित किया जाता है।एकांकी नाटक वस्तुतः मानव जीवन के मर्म का उद्घाटन करने वाली विधि है इसका उद्देश्य एक मात्र मनोरंजन नहीं है। इसमें मानव जीवन की भावभूमि को दृढ़ता प्रदान करने का संकल्प रहता है।

हिन्दी के एकांकी की परिभाषा [ Hindi ke ekanki ki Paribhasha]

हिन्दी के नाटककारों ने एकांकी की अनेक परिभाषाएं दी हैं। डॉ० रामकुमार वर्मा ने इसे परिभाषित करते हुए लिखा है ‘जब समस्त जीवन अथवा जीवन के विस्तृत भाग की अपेक्षा उसके केवल एक भाग या भावना के चित्रण की आवश्यकता पड़ती है तो एकांकी नाटक की रचना की जाती है।” वर्मा जी ने आगे भी लिखा है कि-एकांकी में एक भावना और एक घटना का प्राधान्य होता है। वही एक घटना कली के समान लिखकर पुष्प के रूप में विकसित हो मानव हृदय को आहलादित करती है। एकांकीकार विष्णु प्रभाकर की दृष्टि में एकांकी नाटक का छोटा रूप नहीं है अपितु ” बड़ा नाटक उपवन के समान है और एकांकी गमले केसेठ गोविन्द दास का मानना है कि एकांकी में कोई मूल विचार या समस्या का होना आवश्यक है।

सेठ गोविन्द दास के अनुसार – ” विचार संघर्ष, कथानक आदि नाटक के मुख्य तत्व हैं किन्तु प्रभाव एकता को वे सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। डॉ० नगेन्द्र का मत है कि- ” एकांकी में हमें जीवन का क्रमबद्ध विवेचन न मिलकर एक पहलू, एक महत्वपूर्ण घटना, एक विशेष परिस्थिति अथवा एक उद्दीप्त क्षण का चित्रण मिलेगा ।”उपर्युक्त परिभाषाएं एकांकी के वास्तविक स्वरूप का उद्घाटन करती हैं। प्रारम्भ में विद्वान एकांकी को नाटक का ‘लघु संस्करण’ मानते थे, लेकिन आज उस भ्रम का निराकरण हो चुका है। रूपक के इन दोनों रूपों में काफी अन्तर है। दोनों स्वतन्त्र अस्तित्व वाले हैं। साहित्य के इस नाट्य प्रधान रूप के द्वारा “मानव जीवन के किसी एक पक्ष, एक चरित्र, एक कार्य, एक परिपार्श्व, एक भाव की ऐसी कलात्मक व्यंजना की जाती है कि ये एक अविकल भाव से अनेक कीसहानुभूति और आत्मीयता प्राप्त कर लेते हैं। ”

एकांकी के तत्व [ Ekanki ke Tatva ]

एकांकी नाटक के निम्नलिखित तत्व हैं :

कथानक:

कथानक नाटक उपन्यास, कहानी की भांति इसका एक अनिवार्य तत्व है। एकांकी की कथावस्तु एक तीव्र अनुभूति है। एकांकी की कथावस्तु में कुतूहल एवं चरमसीमा का विशेष महत्व है। डॉ० रामकुमार वर्मा के अनुसार ‘एकांकी के कथानक का रूप हमारे सामने तब आता है, जब आधी से अधिक घटना बीत चुकी होती है। इसलिए उसके आरम्भिक वाक्य में ही कौतूहल और विज्ञान की अपरिमित शक्ति भरी रहती है।” एकांकी की कथावस्तु में एक ही घटना रहती है। घटना की अधिकता का समावेश उचित नहीं है। फिर भी एक एकांकीकार एक ही अंक में अनेक दृश्यों की योजना कर देते हैं, किन्तु रामकुमार वर्मा जैसे समर्थ एकांकीकार इसे उचित नही समझते, निश्चय ही संक्षिप्तता और सांकेतिकता एकांकी का अनिवार्यU.P.H. बी. ए. प्रथम वर्ष- हिन्दी प्रथम प्रश्न-पत्र तत्व है। मार्मिकता, संवेदना, परिधि संकोच प्रभावान्विति एकांकी के अच्छे कथानक के अनिवार्य गुण हैं।

चरित्र-चित्रण

एकांकी के लिये चरित्र-चित्रण एक अनिवार्य तत्व है। किन्तु पात्र की अधिकता इसके सौन्दर्य को कम कर देते हैं। इसीलिए प्रत्येक पात्र की अपनी आवश्यकता एवं विशेषता सिद्ध होनी चाहिए। इससे उसकी उपयोगिता और सौन्दर्य की वृद्धि होगी। पात्र के अर्न्त में विद्यमान संघर्ष एकांकी के सौन्दर्य को बढ़ा देता है। पात्रों की मनःस्थिति और उसके रहस्यों का उद्घाटन चरित्र-चित्रण से आवश्यक माना जाता है। डा० रामकुमार वर्मा ने इस पर विचार करते हुए लिखा है कि-“घटना से अधिक शक्तिशाली पात्र होते हैं… ..एकांकी में पात्र महारथी होता है घटनाएं रथ बनकर समस्या संग्राम में उसे गति प्रदान करती है मेरी दृष्टि में पात्र प्रधान एकांकी कला की दृष्टि से अधिक शक्तिशाली हुआ करते हैं।” वस्तुतः पात्र और उसका चरित्र-चित्रण ही वह तत्व है जिसकी प्रेरणा से एकांकीकार नाटक सृजन के लिए प्रस्तुत होता है। इस प्रकार चरित्र-चित्रण एकांकी का अनिवार्य तत्व है।

कथोपकथन-

कथोपकथन या संवाद एकांकी का सब कुछ है सुन्दर कथावस्तु और चरित्र चित्रण को सफल तभी माना जाएगा जब संवाद उसके अनुरूप हों। सवाद छोटा हो मार्मिक हो और ध्वन्यात्मक हो। अनावश्यक एवं विस्तृत संवाद एकांकी के सौन्दर्य को कम कर देता है। उपेन्द्र नाथ अश्क संवाद को एकांकी का आवश्यक तत्व मानते है। संवाद को ही एकांकी नही कहा जा सकता। कुछ आलोचको का विचार है कि “एकांकी सम्भाषण का दूसरा – नाम है, यह उतना ही सत्य है जितना यह कि ईटों का ही दूसरा नाम मकान है। ” डा० रामचरण महेन्द्र का कथन है कि-“संवादों की स्वाभाविकता के साथ सजीवता बड़ा आवश्यक गुण हैं वे संक्षिप्त, मर्मस्पर्शी, वाग्वैदग्ध्यपूर्ण पात्रों की चारित्रिकता को स्पष्ट करने वाले तथा कथा को आगे बढ़ाने वाला होना चाहिए। “

संकलन त्रय

एकांकी एक छोटे आकार की, तीव्र गति वाली रचना है। इसलिए उसमें स्थान समय और कार्य, घटना की एकता अत्यन्त आवश्यक है हिन्दी के एकांकीकारों में इस विषय पर मतभेद है। डा० राजकुमार वर्मा ने संकलनत्रय के लिए विशेष आग्रह है उनका विचार है कि- “मेरी दृष्टि में एकांकी में संकलनत्रय का महत्वपूर्ण स्थान है एक सम्पूर्ण कार्य एक स्थान पर ही एक समय में हो जाना। मैं एकांकी के लिए आवश्यक समझता हूँ।” विष्णुप्रभाकर भी इसके निर्वाह के समर्थक है “जहां तक संभव हो उसमें दूसरी वार पर्दा न उठाना पड़े कम से कम सेट से काम चल सके वह अच्छा है” वस्तुतः संकलनत्रय के अभाव में यदि एकाग्रता व प्रभावगत एकता है, तो इसके लिए अधिक आग्रह नहीं करना चाहिए। फिर भी एकांकी का सौन्दर्य वर्धन तो संकलनत्रय के निर्वाह से होता ही है।

संघर्ष

आज का एकांकीकार एकांकी में संघर्ष पर अधिक बल देता है। मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं से उत्पन्न घात-प्रतिघात ही एकांकी में व्यक्त रहता है। अतः द्वन्द्व मानव-चरित्र के उद्घाटन में सहयोग देता है। इससे गति आती है।

अभिनेयता

एकांकी एक दृश्य काव्य है। अतः इसमें अभिनय होना आवश्यक है। एकांकी का यह तत्व अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि आज हिन्दी का प्रत्येक एकांकीकार अपनी रचना में रंग निर्देश और रंगमंच का विशेष ध्यान रखता है।भाषा की• सरलता, संवादों की मार्मिकता, आदि एकांकी की रंग मंचीयता में सहयोग देते हैं।

उद्देश्य का प्रभाव

रचनाकार किसी न किसी उद्देश्य को लेकर चलता है। इसी उद्देश्य के माध्यम से वह प्रभाव डालने की चेष्टा करता है। एकांकी का रचना विधान और उसकी शैली इसमें सहयोग करती है। कथानक – आरम्भ नाटकीय स्थल, द्वन्द्व, चरमसीमा और उपसंहार के रूप में विभाजित रहता है। चरम सीमा पर जाकर कथा का अन्त हो जाता है और पाठक या दर्शक के मन पर प्रभाव डालने में यह समर्थ होती है। एकांकी में चरमसीमा का विशेष महत्व है।आज के युग में मानव जीवन की व्यस्तता के कारण एकांकी निरन्तर लोकप्रिय होते जा रहे हैं। क्योंकि एक छोटी सी रचना के द्वारा दर्शक या पाठक पूर्ण रसास्वादन करता रहता है। निश्चित रूप से एकांकी एक लोकप्रिय विधा है।

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