नमस्कार दोस्तों, आज की इस लेख में आप सभी का स्वागत हैं | 10 की परीक्षाओ में अक्सर चरन कमल बंदौ हरि राइ की व्याख्या (Charan Kamal Bando Hari Rai Ki Vyakhya) पूछी जाती हैं| लेकिन इसकी व्याख्या सही तरीके से इंटरनेट पे कही नहीं उपलब्ध हैं| इसलिए आज की इस लेख में आप इसकी व्याख्या को जानेंगे | मैं आप सभी विद्यार्थियों से यह अनुरोध करता हूँ की जिस प्रकार से इस लेख को लिखा गया हैं| ठीक उसी प्रकार से आप परीक्षाओ में लिख सकते हैं|

——- पद ——
चरन कमल बंदौ हरि राइ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौ सब कुछ दरसाइ॥
बहिरौ सुनै , गूँग पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराइ।
सूरदास स्वामी करूनामय, बार – बार बंदौं तिहिं पाइ॥
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चरन कमल बंदौ हरि राइ की सन्दर्भ:
सन्दर्भ: प्रस्तुत पद्यांश महाकवि सूरदास जी द्वारा रचित ‘ सूरसागर ‘ महाकाव्य से हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड में संकलित ‘ पद ‘ शीर्षक से उद्धृत है।
चरन कमल बंदौ हरि राइ की प्रसंग:
प्रसंग: प्रस्तुत पद में सूरदास जी ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण के चरणों की वन्दना करते हुए उनकी महिमा का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है।
चरन कमल बंदौ हरि राइ की व्याख्या
व्याख्या: भक्त शिरोमणि सूरदास जी श्रीकृष्ण के चरण कमलों की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु मैं आपके चरणों की, जो कमल के समान कोमल है, वन्दना करता हूँ इनकी महिमा अपरम्पार है, जिनकी कृपा से लंगड़ा व्यक्ति पर्वतों को लांघ जाता है, अन्धे व्यक्ति को सब कुछ दिखाई देने लगता है, बहरे को सुनाई देने लगता है, गूँगा बोलने लगता है और गरीब व्यक्ति राजा बनकर अपने सिर पर छत्र धारण कर लेता है। सूरदास जी कहते हैं कि हे कृपालु और दयालु प्रभु ! मैं आपके चरणों की बार – बार वन्दना करता हूँ। आपकी कृपा से असम्भव – से – असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। अतः ऐसे दयालु श्रीकृष्ण के चरणों की मैं बार – बार वन्दना करता हूँ।
काव्य सौन्दर्य प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने ईश्वर के चरणों की महिमा व्यक्त करते हुए उनके प्रति भक्ति भाव को व्यक्त किया है।
भाषा: साहित्यिक ब्रज शैली मुक्तक गुण प्रसाद
रस भक्ति छन्द गेयात्मक शब्द – शक्ति लक्षणा
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार: बार – बार में एक शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। अनुप्रास अलंकार: सूरदास स्वामी में स वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
रूपक अलंकार: चरण कमल ‘ में कमलरूपी कोमल चरणों के बारे में बताया गया है। इसलिए यहाँ रूपक अलंकार है।
शब्दार्थ:
शब्द | अर्थ |
---|---|
चरन | पैर |
बंदौ | वन्दना करना |
हरि राई | श्रीकृष्ण |
पंगु | लंगड़ा |
गिरि | पहाड़ |
लघै | पार करना |
दरसाइ | दिखना |
बहिरी | बहरा |
सुने | सुनना |
पुनि | फिर से |
रंक | गरीब |
घराइ | धारण करना |
विहि | उसा |
इस पद से जुड़े कुछ सवाल
प्रश्न: चरण कमल बंदौ हरि राई का क्या अर्थ है?
उत्तर: जिस पर श्रीकृष्ण की कृपा हो जाती है, उसके लिए असंभव भी संभव हो जाता है। वह बहुत कुछ कर सकता हूँ।
प्रश्न: चरन कमल बंदौ हरि राइ किसका उदाहरण है?
उत्तर: यह पद एक रूपक अलंकार का उदाहरण हैं|