बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय | Balkrishna bhatt ka jeevan parichay

नमस्कार दोस्तों, allhindi.co.in के एक नए लेख में आपका स्वागत है। आज की इस नए लेख में आप जानेंगे कि बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय तथा निबन्ध की पूरी विस्तृत जानकारी आपको इस लेख में प्राप्त होगी। इसके पिछले लेख में हमने भाषा और व्याकरण किसे कहते हैं इसके बारे में जाना था | तो आइए आज की इस लेख में हम जाने बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय  

यह प्रश्न अक्सर स्नातक कर रहे  छात्र एवं छात्राओं के भी परिक्षाओं में पूछे जाते हैं यदि आप इस प्रश्न का उत्तर परीक्षा में लिखना चाहते हैं तो आप नीचे दिए गए हेडिंग्स के साथ इस प्रश्न का जवाब लिख सकते हैं|

बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय:

पंo बालकृष्ण भट्ट का जन्म सन् 1844 ई 0 को प्रयाग के एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। संस्कृत शिक्षा के अनुकूल वातावरण प्राप्त होने के कारण आपने संस्कृत साहित्य का गम्भीर अध्ययन किया। वहीं कायस्थ पाठशाला में अध्यापक हो गये। सन् 1876 ई 0 में भट्ट जी ने प्रयाग से ‘हिन्दी प्रदीप’ नामक मासिक पत्रिका के प्रकाशन का कार्य आरम्भ किया। यह पत्रिका बहुत लोकप्रिय हुई तथा हिन्दी जगत के आकाश में यह पत्रिका तीस वर्षों तक छायी रही। इस पत्रिका का योगदान यह है कि हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रति लोगों के मन में एक आकर्षण पैदा किया इससे हिन्दी का एक अच्छा पाठक समाज सामने आया।

इस पत्रिका में सांस्कृतिक सामाजिक, साहित्यिक, धार्मिक, राजनीतिक, नैतिक और मनोवैज्ञानिक इत्यादि जीवन से सम्बन्धित ज्ञानवर्धक प्रेरणा देने वाली सामग्री प्रकाशित होती थी। इसमें व्यावहारिक मुहावरेदार व्यंग्यात्मक और प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग होता था। नवविकसित हिन्दी गद्य की विविध विधाओं के प्रति लोगों को रुझान बढ़ रहा था। इसमें सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का समन्वय था, जिससे पाठक इसको अपनाने के लिए विवश था।

यह पत्रिका भारतेन्दु युग के साहित्य के प्रमुख प्रयोजन एवं मानदण्ड को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी। पं 0 बालकृष्ण भट्ट, भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र के अन्य सहयोगियों में थे। हरिश्चन्द्र ने साहित्य के माध्यम से समाजसेवा तथा जनसेवा का जो आन्दोलन आरम्भ किया था उसको सम्पन्न करने और आगे बढ़ाने में भट्ट जी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यही कारण है कि भारतेन्दु युग के तीन बड़े लेखकों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के अलावा पं 0 बालकृष्ण भट्ट तथा पं 0 प्रताप नारायण मिश्र के नाम ही लिये जाते हैं। भट्ट जी के कर्मठ एवं रचनात्मक जीवन का अन्त प्रयाग में सन् 1914 में हुआ।

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बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय:
बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय

बालकृष्ण भट्ट जी की रचनाएँ

भट्ट जी मुख्य रूप से निबन्धकार थे। वे अपनी पत्रिका में सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक विविध प्रकार के मौलिक विषयों के निबन्धों का लेखन एवं प्रकाशन करते थे। आँख, कान, नाक, बातचीत जैसे सहज शीर्षकों के माध्यम से गम्भीर एवं महत्त्वपूर्ण विचार प्रस्तुत करते थे।

उन्होंने मुहावरेदार एवं व्यांग्यात्मक शीर्षकों का भी प्रयोग किया है जैसे ‘मागिवो भलो न वापसे जो विधि राखे टेक’ या ‘रोटी तो किसी भांत कमा खाँय मुछ्न्दर’ आदि प्रगतिशील विचारों के संकेत में हम उनके सन्तति नियमन ‘शीर्षक निबन्ध को देख सकते हैं। निबन्धों के अतिरिक्त उन्होंने कुछ समाज के सुधार की दृष्टि से छोटे-छोटे व्यंग्यात्मक नाटकों की भी रचना की है।’ कालिदास की सभा ‘ , रेल का विकट खेल, बालविवाह और चन्द्रसेन आदि प्रमुख नाटक हैं।

बालकृष्ण भट्ट के लेखन का विषय

भट्ट जी के निबन्ध लेखन के विषय में विविधता एवं व्यापकता को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत अध्ययन कर सकते हैं

बालकृष्ण भट्ट जी की राष्ट्रीयता

भट्ट जी की रचनाओं में राष्ट्र का विकास पराधीनता से राष्ट्र की मुक्ति विदेशी शासन के अभिशाप अपने देश के प्रति लगाव स्वतन्त्रता की चेतना का अभ्युदय विषयों के माध्यम से राष्ट्रीयता के स्वर को प्रमुखता दी है। कहने का आशय यह है कि उनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता का स्वर ही प्रमुखता लिए हुए है।

हमारे देश में राष्ट्रीयता के अभाव के कारण ही बल, विद्या और वैभव के रहते हुए भी हम विदेशियों के गुलाम हुए। हमारे देश के नागरिक राष्ट्र के स्वाभिमान और राष्ट्र के गौरव की चिन्ता से युक्त हो जाय तो हमारा देश विश्व के सबसे सम्पन्न एवं गौरवशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित हो जाएगा इस प्रकार के विचारों से युक्त कई निबन्धों की रचना उन्होंने की है।

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बालकृष्ण भट्ट जी की सामाजिक चेतना

भट्ट जी उदात्त सांस्कृतिक चेतना से सम्पन्न रचनाकार थे। वे समन्वित भारतीय संस्कृति के स्वप्न द्रष्टा थे। भारत, भारतीय तथा भारतीयता का प्रबल आग्रह रखते हुए भी उनकी दृष्टि संकीर्ण नहीं थी। व्यापक आदान प्रदान के द्वारा वे सांस्कृतिक विकास की आवश्यकता पर बल देते थे। इस दृष्टि से देखा जाय तो वे भारतीय परम्पराओ तथा मान्यताओं के प्रति आस्थावान थे। दूसरी संस्कृति की अच्छी चीजों को ग्रहण करने में परहेज नहीं रखते थे।

इस प्रकार एक समन्वयवादी व्यापक एवं उदात्त सांस्कृतिक चेतना का स्वरूप उनके निबन्धों में दिखायी देता है, जिसमें प्राचीन एवं नवीन संस्कृतियों के द्वन्द्व को बजाय सांस्कृतिक विकास का दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता प्रतिपादित की गयी है।

बालकृष्ण भट्ट जी की राजनीति चेतना

राजनीति चेतना-पं 0 बालकृष्ण भट्ट देश का राजनीतिक प्रति पर्याप्त जागरूक रचनाकार थे। इसीलिए उनके निबन्धों में युगबोध पर आधारित यथार्थ दृष्टि की प्रचुरता पायी जाती है। राजनीति के क्षेत्र में अंग्रेजी उपनिवेशवाद के विरुद्ध जो चेतना विकसित हो रही थी तथा जो क्रमश: एक जन आन्दोलन का रूप धारण कर रही थी, भट्ट जी जैसे रचनाकार साहित्य के माध्यम से उसके अनन्य सहयोगी अथवा सक्रिय प्रतिभागी की भूमिका का निर्वहन कर रहे थे। यही कारण है कि स्वदेशी, असहयोग और सत्याग्रह आदि की अवधारणाएँ राजनीति के क्षेत्र में चर्चित होने के पूर्व इनके साहित्य में महत्त्वपूर्ण रूप में विकसित दिखायी देती है।

बालकृष्ण भट्ट जी की वैचारिकता

निबन्ध का प्रमुख तत्व विचार होता है। वैचारिकता ही भट्ट जी को एक सफल निबन्धकार के रूप में प्रतिष्ठित करता है। उनके निबन्धो की सफलता का प्रमुख कारण उसमें राष्ट्र जीवन के विविध पक्षों के सन्दर्भ में अत्यन्त सुलझे हुए विचारों का समावेश करना।

बालकृष्ण भट्ट जी की वैयक्तिकता

इस प्रयास में भट्ट जी के व्यक्तित्व का प्रभाव उनके निबन्धों पर स्पष्ट दिखायी देता है। चिन्तन मनन, अध्ययन तथा व्यापक जीवन अनुभव से युक्त रचनाकार का व्यक्तित्व भट्ट जी के निबन्धों में प्रतिबिम्बित होता है।

बालकृष्ण भट्ट जी मनोवैज्ञानिक दृष्टि

भट्ट जी के कई निबन्धों में उनके मनोवैज्ञानिक दृष्टि के दर्शन होते हैं। इन निबन्धों में मानव स्वभाव के सूक्ष्म अध्ययन की उनकी प्रतिभा प्रमाणित होती है। विश्वास, रुचि और आत्म गौरव शीर्षक निबन्ध में मानव मन की प्रवृत्तियों का सूक्ष्म विश्लेषण उपलब्ध होता है, जिसका विकसित रूप आगे चलकर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबन्धों में दिखायी देता है। इस प्रकार भट्ट जी ने विविध विषयों पर निबन्धों की रचना की है। उनके निबन्धों के विषय मानव जीवन के विविध पक्षों से प्रत्यक्षतः सम्बद्ध होने के कारण पाठकों के लिए उपयोगी और प्रेरणा पूर्ण होते हैं। उनकी लोकप्रियता का यह प्रमुख कारण है।

बालकृष्ण भट्ट जी की शैलीगत विशेषताएँ

भट्ट जी के निबन्धों की लोकप्रियता का बहुत बड़ा कारण शैलीगत सफलता है। उनके निबन्ध शैली पर उनके व्यक्तित्व की छाप दिखायी पड़ती है। इस कारण एक ओर जहाँ गम्भीर विचार तथा पाण्डित्य की झलक इनमें दिखायी पड़ती है, वहीं दूसरी ओर निबन्धकार की मनमौज और व्यंग्य-विनोद आदि की विशेषता भी इन निबन्धों की सफलता में योग करती हैं। ब्रिटिश सत्ता तथा समाज के प्रतिष्ठित वर्गों के प्रति तीखे व्यंग्य में उनकी निर्भीकता और स्पष्टवादिता सहज रूप से देखी जा सकती है।

भट्टजी के व्यंग्य मादक होने के साथ-साथ सुधारात्मक भी हैं। मनोरंजकता और उपदेशात्मकता का समन्वय उनकी निबन्ध शैली की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं। कभी-कभी वे सीधे पाठकों की सम्बोधित करके उन्हें सत्परामर्श देते हुए दिखायी देते हैं और ब्यास तथा समास जिस भी शैली में उनकी बात पाठकों को सरलता पूर्वक बोधगम्य हो सके उसे अपनाते हुए वे विषय का प्रतिपादन करते हैं।

कृष्ण भट्ट जी की भाषागत विशेषताएँ-

पं0 बालकृष्ण भट्ट भारतेन्दु युग के सर्वश्रेष्ठ निबन्धकार हैं। भट्ट जी भारतेन्दु को अपना साहित्यिक नेता मानते थे। इसीलिए भाषा शैली में भी भारतेन्दु हरिश्चन्द के अनुयायी थे। भाषा की दृष्टि से भारतेन्दु का विशेष महत्त्व है। इस समय लेखक हिन्दी खड़ी बोली का रूप संवारने, सब उसे सुसज्जित करने में प्राण-पण से लगे थे। पण्डित प्रताप नारायण मिश्र निरन्तर शिष्ट भाषा लिखने का प्रयास कर रहे थे किन्तु इससे भी आगे बढ़कर भट्टजी भाषा का आदर्श रूप प्रस्तुत करना चाहते थे।

वास्तव में यह युग भाषा की दृष्टि से संक्रमण काल था। खड़ी बोली अपना स्वरूप निथ गरित करने में लगी थी। यही कारण है कि भट्ट जी की भाषा में वह शिष्टता नहीं आ पायी जो खड़ी बोली की विशेषता है। उन्होंने अनेक भाषाओं जैसे-अंग्रेजी, संस्कृत, अरबी, फारसी आदि से नि: संकोच भाव से शब्दों को ग्रहण किया। एक ओर जहाँ उन्होंने सरकुलेशन, फिलास्फी, एजुकेशन, एक्सपोर्ट, रिलीफ, प्रावलम, ट्रेजडी, आप दू डेट, आदि अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया है, वहीं उनकी भाषा में नेश्तनाबूत, आलीशान, कौम, उम्दा, इत्तिफाक आदि अरबी फारसी के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। गम्भीर से गम्भीर विषयों के विवेचन में मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से चमत्कार आ गया है।

इस लेख के बारे में:

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