प्रिय पाठक allhindi.co.in के एक नए लेख में आप सभी का स्वागत है। आज के इस लेख में आप कवि कर्तव्य निबंध (Kavi Kartvya Nibandh) जानने वाले हैं। यह प्रश्न BA 1st year के बच्चों की परीक्षाओ में अक्सर पूछे जाते हैं। इस लेख जिस प्रकार से हैडिंग के साथ लिखा गया हैं। उस प्रकार से आप परीक्षाओ में भी लिख सकते हैं।
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कवि कर्तव्य निबंध [Kavi Kartvya Nibandh]
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी गद्य के परिष्कारक, प्रसारक एवं प्रचारक थे। सरस्वती के माध्यम से एक ओर तो उन्होंने हिन्दी को व्याकरण सम्मत बनाया और दूसरी ओर कवियों एवं लेखकों को प्रोत्साहित कर उन्हें हिन्दी की श्री वृद्धि के लिए प्रेरित किया।

आचार्य द्विवेदी का दृष्टिकोण [Aacharya Dwedi Ka Drishtikon]
कवि कर्तव्य आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का अति विख्यात निबन्ध है। आ0 द्विवेदी ने इस निबन्ध में हिन्दी के कवियों के कर्तव्यों और कवि की कविता में क्या-क्या ध्यान देने की बाते हैं, इस पर विस्तृत चर्चा की है। वे कवि के कर्तव्य को-छन्द, भाषा, अर्थ और विषय में बांटकर इस पर गहन चर्चा की है। हम क्रमवार एक-2 बिन्दुओं पर उनके विचारों का अध्ययन करेंगे।
1. छन्द [Chand]
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का मानना है कि कविता गद्य और पद्य दोनों में हो सकती है। जो रचना छन्दोबद्ध है वही कविता है। इस प्रकार का काव्य के सम्बन्ध में लक्षण देना, अज्ञानता की पराकाष्ठा है। कविता का लक्षण जहाँ भी पाया जाय चाहे गद्य हो चाहे पद्य वही काव्य है।
- जिन पंक्तियों में मात्राओं की संख्या नियमित होती है, वे छन्द कहलाती हैं।
- जो सिद्ध कवि हैं, वे किसी भी छन्द का प्रयोग करें, उनका पद्य अच्छा ही होता है। सामान्य कवियों को विषय के अनुकूल छन्दों का प्रयोग करना चाहिए।
- दोहा, चौपाई, सोरठा, धनाक्षरी, छप्पय और सवैया इत्यादि छन्दों का प्रयोग अधिक मात्रा में हो चुका है। कवियों को इनके अतिरिक्त और भी छन्दों में कविता लिखनी चाहिए।
- आजकल की बोलचाल की हिन्दी कविता उर्दू के विशेष प्रकार के छन्दों में अधिक खुलती है, अतः ऐसी कविता के अनुकूल छन्द प्रयुक्त होने चाहिए।
- कवियों को जिन छन्दों में प्रवीणता हो उसी में कविता लिखनी चाहिए।
- पद के अन्त में अनुप्रास हीन छन्द भी लिखे जाने चाहिए।
2. भाषा [Bhasha]
- कवि को ऐसी भाषा लिखनी चाहिए, जिसे कोई भी सहजता से समझ ले और अर्थ को हृदयंगम कर सके।
- क्लिष्ट की अपेक्षा सरल लिखना ही सब प्रकार से वांछनीय है।
- कविता लिखने में व्याकरण के नियमों की अवहेलना न करनी चाहिए। क्योंकि व्याकरण का विचार न करना कवि की तद्विषयक अज्ञानता का सूचक है।
- मुहावरे का भी विचार रखना चाहिए। बिना मुहावरे के भाषा अच्छी नहीं लगती।
- विषय के अनुकूल शब्द स्थापना करनी चाहिए।
- सर्वत्र ललित और मधुर शब्दों का प्रयोग करना ही उचित है।
- शब्द चुनने में अक्षर-मैत्री का विशेष विचार रखना चाहिए।
- शब्दों को यथा स्थान रखना चाहिए।
- गद्य और पद्य की भाषा पृथक-पृथक् न होनी चाहिए।
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उपर्युक्त सूत्र वाक्यों के कवियों की भाषा से सम्बन्धित दिशा निर्देश दिये हैं।
अर्थ [Arth]
- अर्थ सौरस्य ही कविता का प्राण है। जिस पद्य में अर्थ का चमत्कार नहीं है वह कविता नहीं है।
- कवि जिस विषय का वर्णन करे उस विषय से उसका तादात्म्य हो जाना चाहिए।
- मनोनीत अर्थ को इस प्रकार व्यक्त करना चाहिए कि पद्य पढ़ते ही पढ़ने वाले उसे तत्क्षण हृदयंगम कर सकें।
- अर्थ सौरस्य के लिए, जहाँ तक सम्भव हो, ऐसे ही शक्तिमान शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
- अर्थहीन अथवा अनुपयोगी शब्द न लिखे जाने चाहिए और न शब्दों के प्रकृत रूप को बिगाड़ना चाहिए।
- अश्लीलता और ग्राम्यता-गर्भित अर्थो से कविता को कभी न दूषित करना चाहिए।
विषय [Vishay]
- कविता का विषय मनोरंजक और उपदेश जनक होना चाहिए।
- बिना योग्यता सम्पादन किये समस्यापूर्ति के झगड़े में न पड़े।
- छोटी-छोटी स्वतन्त्र कविता करनी चाहिए।
- एक भाषा की कविता का दूसरी भाषा में अनुवाद करना मूल कवि का अपमान करना है।
- कवि की कल्पनाशक्ति तीव्र होती है। इस कल्पनाशक्ति के द्वारा वह कठिन बातों को ऐसे अनोखे ढंग से सबके सामने रखता है। कि वे सहज ही समझ में आ जाती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी अपने निबन्ध’ कवि-कर्तव्य ‘ में कवि के द्वारा छन्द, भाषा, अर्थ और विषय की महत्ता को विश्लेषित किया है। यह शास्त्रीय विवेचन है। कविता या किसी भी रचना में उक्त बिन्दुआ का ध्यान रखकर उसे अत्यधिक सुन्दर, सरस एवं चित्ताकर्षक बनाया जा सकता है।
इस लेख के बारे में:
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