सांख्यिकी क्या है?

सांख्यिकी का परिचय:- आपने अपने दैनिक जीवन में संख्याओं की सारणी के रूप में वस्तु और उसके मूल्य , रेल के आने जाने का समय तथा बस के आने जाने का समय आदि को देखा होगा है, यह सारणियाँ हमें आंकड़े उपलब्ध कराती हैं।

सांख्यिकीय आंकड़े:- संख्याओं के वे संग्रह हैं जो किसी निश्चित उद्देश्य से कुछ सूचनाएं देने या लेने के लिए एकत्रित किए जाते हैं, सांख्यिकीय आंकड़े कहलाते हैं।

सांख्यिकीय आंकड़ों की विशेषताएं:-

1. आंकड़े परिवर्तनशील होते हैं।

2. सजातीय (एक समान) आंकड़े होने पर ही तुलना करके निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

3. आंकड़े सदैव समूह में एकत्र किए जाते हैं।

4. आंकड़े सदैव संख्यात्मक राशि मैं होते हैं।

आंकड़ों का संग्रह:- किसी समस्या के अध्ययन में अध्ययनकर्ता का सबसे पहला कार्य आंकड़ों का संग्रह करना है।

आंकड़ों का संग्रह दो स्रोतों से किया जाता है-

1.प्राथमिक स्रोतों से

2. द्वितीयक स्रोतों से

प्राथमिक स्रोत:- जिन स्रोतों से प्रथम (पहली) बार आंकड़े एकत्र (इकट्ठा) किए जाते हैं, उन्हें प्राथमिक स्रोत कहते हैं।

द्वितीयक स्रोत:- जिन स्रोतों से पहले से उपलब्ध आंकड़ों से वांचित (मनचाहा) आंकड़े प्राप्त किए जाते हैं, वे द्वितीयक स्रोत कहलाते हैं।

आंकड़े दो प्रकार के होते हैं-

1.प्राथमिक आंकड़े

2. द्वितीयक आंकड़े

प्राथमिक आंकड़े:- प्राथमिक स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों को, प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है।

अथवा

जब कोई शोधकर्ता किसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर स्वयं आंकड़ों को एकत्र करता है तो इन आंकड़ों को प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है।

द्वितीयक आंकड़े:-  द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों को, द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।

अथवा

जब कोई शोधकर्ता किसी अन्य उद्देश्य से संकलित (इकट्ठा) किए गए आंकड़ों को अपने प्रयोग में लाता है तो इन आंकड़ों को द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।

मिलान चिन्ह ( Tally Marks ):- यह पाँच-पाँच के समूह में लिखी जाने वाली एक प्रकार का संकेत है जिसमें चार लकीरे सीधी और पांचवी लकीर चार खड़ी लकीरों को काटती हुई एक तिरछी लकीर होती है, इन लकीरों के चिन्हों को मिलान चिन्ह (Tally Marks) कहते हैं। इसे ।।।। से  प्रदर्शित करते हैं।

अपरिष्कृत या अवर्गीकृत आंकड़े:- जिस मूल रूप में आंकड़े एकत्र किए जाते हैं, वे अव्यवस्थित होते हैं, ऐसे आंकड़ों को अपरिष्कृत अथवा अवर्गीकृत आंकड़े कहते हैं।

अवर्गीकृत आंकड़ों को कच्चे आंकड़े भी कहते हैं।

आंकड़ों को व्यवस्थित करना:- मूल रूप में एकत्र किए गए आंकड़ों को देखकर आसानी से इनसे सीधे कोई निष्कर्ष नहीं प्राप्त किया जा सकता है इनसे कोई उद्देश्य गत निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम इन को व्यवस्थित करना पड़ता है।

आंकड़ों को व्यवस्थित करने की विधियां:- अव्यवस्थित आंकड़ों को व्यवस्थित करने के लिए निम्नलिखित दो विधियों का प्रयोग करते हैं-

1.आंकड़ों को आरोही अथवा अवरोही क्रम में लिखना

2.आंकड़ों का वर्गीकरण करना

आरोही क्रम:- आंकड़ों को आरोही क्रम में लिखने के लिए सर्वप्रथम सबसे छोटी संख्या, उसके बाद उसके बराबर अथवा उससे ठीक बड़ी संख्या, फिर उसके बराबर अथवा उससे ठीक बड़ी संख्या, ……….और फिर सबसे अंत में सबसे बड़ी संख्या लिखते हैं।

उदाहरणार्थ:- संख्याओं 20, 28, 42, 31, 28, 11, 125 को आरोही क्रम में लिखिए।

हल:- आरोही क्रम- 11, 20, 28, 28, 31, 42, 125

अवरोही क्रम:- आंकड़ों को अवरोही क्रम में लिखने के लिए सर्वप्रथम सबसे बड़ी संख्या , उसके बाद उसके बराबर अथवा उससे ठीक छोटी संख्या , फिर उसके बराबर अथवा उससे ठीक छोटी संख्या , ……….और फिर सबसे अंत में सबसे छोटी संख्या लिखते हैं।

उदाहरणार्थ:- संख्याओं  45, 16, 33, 32, 30, 27, 33 को अवरोही क्रम में लिखिए।

हल:- अवरोही क्रम- 45, 33, 33, 32, 30, 27, 16

आंकड़ों का वर्गीकरण करना:- आंकड़ों की संख्या अधिक होने पर उन्हें आरोही अथवा अवरोही क्रम में व्यवस्थित करने में काफी कठिनाई होती है। ऐसी स्थिति में हम आंकड़ों के निम्नलिखित दो प्रकार से वर्गीकृत करते हैं- 

1.गुणों के आधार पर वर्गीकरण

2. वर्ग-अंतराल के आधार पर वर्गीकरण

गुणों के आधार पर वर्गीकरण:- गुणात्मक आधार पर वर्गीकरण वह रीति है जिसमें संकलित (संग्रह की गयी) आंकड़ों को उनकी समानता एवं असमानता के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांट दिया जाता है।

अथवा

इस वर्गीकरण में वे सब आंकड़े (जिनमें एक ही प्रकार के गुण होते हैं) एक वर्ग में रखे जाते हैं, जिनमें दूसरे गुण होते हैं, दूसरे वर्ग में रखे जाते हैं।

उदाहरणार्थ:- भारत के विभिन्न प्रदेशों की जनसंख्या को हम उनके निवास स्थान के आधार पर 2 वर्गो में बांट सकते हैं-

1. ग्रामीण

2. शहरी

वर्ग अंतराल के आधार पर वर्गीकरण:- जब आंकड़ों की संख्या बहुत अधिक होती है और केवल गुणों के आधार पर इनका वर्गीकरण करने से अध्ययन के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं होती है तब संख्यात्मक सामग्री को अधिक प्रभावशाली तथा सांख्यिकीय गणना हेतु इन्हें अधिक प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करने के लिए इन आंकड़ों को समूह या वर्ग-अंतरालों में रखकर भी व्यवस्थित करते हैं।

सारणीबद्ध आंकड़े:- अव्यवस्थित आंकड़ों को व्यवस्थित रूप में रखने पर प्राप्त आंकड़ों को, सारणीबद्ध आंकड़े कहते हैं।

बारंबारता का शाब्दिक अर्थ:- बारंबारता का शाब्दिक अर्थ है- बारम् + बार। अर्थात किसी संख्या का बार-बार आना।

बारंबारता:- बारंबारता वह संख्या है जिससे यह पता चलता है कि आंकड़ों में कोई संख्या विशेष कितनी बार दोहराई गई है।

बारंबारता बंटन:- आंकड़ों को उनकी बारंबारता के साथ प्रस्तुत करने को बारंबारता बंटन कहते हैं।

बारंबारता बंटन सारणी:- आंकड़ों को सारणीबद्ध कर उनकी बारंबारता के साथ प्रस्तुत करने को बारंबारता बंटन सारणी या बारंबारता सारणी कहते हैं।

चित्रात्मक प्रदर्शन या आंकड़ों का ग्राफ:- आंकड़ों के आरेखीय निरूपण को, चित्रात्मक प्रदर्शन अथवा आंकड़ों का ग्राफ कहते हैं।

चित्रारेख या पिक्टोग्राफ (Pictograph):- आंकड़ों के चित्रो द्वारा प्रदर्शन को चित्रारेख या पिक्टोग्राफ (Pictograph) कहते हैं।

दंड आरेख या दंड आलेख:- आंकड़ों को एक समान चौड़ाई के क्षैतिज या ऊर्ध्वाधर दंड द्वारा चित्रीय निरूपण दंड आरेख (Bar Diagram) या दंड आलेख (Bar Graph) कहलाता है।

दंड आरेख खींचते समय निम्नलिखित नियमों का ध्यान रखना चाहिए-

1.दंड आरेख के विषय वस्तु को ग्राफ के ऊपर एक शीर्षक के रूप में लिखना चाहिए।

2.ग्राफ में पैमाना अवश्य लिखना चाहिए पैमाना ऐसा होना चाहिए जिससे आकार ना तो बहुत बड़ा और ना इतना छोटा हो की चित्र की स्पष्टता नष्ट हो जाए।

3.सभी दंडों की चौड़ाई बराबर होनी चाहिए।

4.दंडों के बीच की दूरी समान होनी चाहिए।

5.प्रत्येक दंड एक ही आधार पर होना चाहिए।

वृत्तारेख या पाई ग्राफ निरूपण:- सांख्यिकीय आंकड़ों को किसी वृत्त के त्रिज्यखंडो द्वारा प्रस्तुत करना, वृत्तारेख या पाई ग्राफ निरूपण कहलाता है।

अभ्यंतर:- वृत्त के आंतरिक क्षेत्र को अभ्यंतर कहते हैं।

संपूर्ण कोण:- वृत्त के केंद्र पर कुल 3600 डिग्री का कोण बनता है, इसे संपूर्ण कोण कहते हैं।

त्रिज्यखंड के केंद्रीय कोण की माप = विभिन्न साधन अपनाने वाले लोग ÷ कुल लोग × 360

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