जल संकट क्या है | JAL Sankat Kya Hai

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जल संकट क्या है

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का 70% जल प्रदूषण से ग्रसित है। 80% ग्रामीण घरों में पाइप्स पानी की पहुंच नहीं है। देश के लगभग 40% से अधिक क्षेत्रों में सूखे का संकट है। यह एक बहुत बड़ी संकट हैं।

पृथ्वी पर जीने के लिए जल बहुत ही महत्वपूर्ण है इसके बिना जीवन की कल्पना भी करना बहुत ही मुश्किल है। हम सभी जानते हैं कि भूमि की तुलना में महासागरों में जल की मात्रा अधिक है फिर भी उपयोग में लाने वाले जल की कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में गर्मी के दिनों में वर्षा नहीं होने के कारण गावों में कुंआ, पोखर और नदी नाले सब सुख जाते है तथा जल संकट की स्थिति पैदा हो जाती है। भूमि का जलस्तर भी काफी नीचे चला जाता है, जिससे हैंडपंप काम नहीं करते है।

आज के आधुनिक समय में बढ़ती जनसंख्या के कारण जल की बर्बादी की अधिकता होने के कारण पृथ्वी पर मनुष्य की उपयोग का सारा जल खत्म होते जा रहा है

जल संकट से तात्पर्य क्या है [ Jal Sankat Se Tatparya Kya Hai ]

जल का अर्थ है- पानी, और संकट का अर्थ है- मुसीबत या परेशानी अर्थात् जल संकट से तात्पर्य पानी की कमी से आने वाली मुसीबत या परेशानी है।

जल संकट क्या है [ Jal Sankat Kya Hai ]

विभिन्न कार्यों के लिए जल की कम उपलब्धता है या अनुपलब्धता ही जल संकट कहलाता है।

स्वीडन के एक विशेषज्ञ फाल्कन मार्क के अनुसार- प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन एक हजार घन मीटर जल की आवश्यकता होती है, इससे कम जल की उपलब्धता जल संकट कहलाता है।

जल संकट भारत को कैसे प्रभावित करता है [ Jal Sankat Bharat Ko Kaise Prabhavit Karta Hain ]

  • नीति आयोग के जल गुणवत्ता के सूचना के अनुसार 122 देशों के जल संकट में भारत 120 वें स्थान पर है।
  • तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण वर्ष 2030 तक देश में पानी की मांग वर्तमान की तुलना में दोगुना हो जायेगी। जिससे देश की 40% जनसंख्या को पीने की पानी उपलब्ध नही होगी।
  • साथ ही बढ़ती वैश्विक तापमान भारत में जल संकट की स्थिति को और अधिक कठिन बनाने में सहायक हो रहा है।
  • केंद्रीय भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व में सर्वाधिक भू-जल का उपयोग करने वाला देश है। भारत की तुलना में चीन और अमेरिका में सबसे कम भू-जल का उपयोग किया जाता हैं। 
  • भारत में अनुपात: भारत में भू-जल का 85% कृषि में, 5% घरेलू, 10% उद्योग में उपयोग किया जाता है। शहरी क्षेत्रों में 50% तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 85% जरूरतें भू-जल से पूरी होती हैं।

जल संकट के कारण क्या है [ Jal Sankat ke Karan kya hain ]

  • मानसून पर निर्भरता: भारत के अधिकांश महत्वपूर्ण जल स्रोत जैसे भूमिगत जल, झीलें, नदियां तथा समुद्र आदि में जल का फिर से भरना मानसूनी वर्षा पर बहुत अधिक निर्भर है। लेकिन मानसून प्रणाली में जलवायु परिवर्तन, एल-नीनों जैसे संवेदनशील कारकों ने जल संकट की स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया है।
  • जल और वर्षा का असमान वितरण: कुछ क्षेत्रों को आवश्यकता से अधिक जल मिलता है। जबकि कुछ क्षेत्र में वर्षा के अधिकांश समय सूखे का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश में जल सूखा एक आवर्तक घटना है जहां कोई भी जिला पूरी तरह से सूखे से मुक्त नहीं है। राजस्थान भारत के सबसे अधिक सूखाग्रस्त क्षेत्र में से एक है।
  • जल की बढ़ती मांग: जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिकरण, तीव्र शहरीकरण, सिंचाई की बढ़ती जरूरतों तथा घरेलू पानी की उपयोग में वृद्धि ने पानी की मांग को तेज कर दिया।
  • भूजल का अति दोहन: भारत जैसे विकासशील देश में भूजल सिंचाई की लगभग 80% आवश्यकता को पूरा करता है। जिसके परिणामस्वरूप भूजल स्रोतों का तेजी से क्षरण हो रहा है। किसानों को दी जाने वाली मुफ्त बिजली और जल के अकुशल उपयोग ने भूजल गिरावट की तीव्रता में वृद्धि की है।
  • नगदी फसल: देश की प्रमुख फसलों जैसे गेहूं, चावल और गन्ने की खेती में अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है। प्रति किलो चावल के उत्पादन में लगभग 3500 लीटर जल लगता है। इन फसलों वाले कृषि क्षेत्रों में जल संकट की समस्या विशेष रूप से विद्यमान है। उदाहरण के लिए पंजाब और हरियाणा।
  • जल प्रदूषण: शहरी आद्योगिक और घरेलू अपशिष्टों को नदियों, झीलों आदि में छोड़ना भारत में ताजे पानी के स्रोतों को प्रदूषित कर रहा है। उर्वरक युक्त कृषि जल के सतही बहाव ने जल में सुपोषण की समस्या को बढ़ाया है।
  • अकुशल कृषि पद्धति: भारत में आधी से अधिक आबादी अभी भी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। 1960 के दशक में हरित क्रांति को अपनाने के बाद लगभग 50% खाद्य उत्पादन सिंचित भूमि से होता है। लेकिन अकुशल खेती के तरीकों के कारण भूमि और जल के लवणीकरण में वृद्धि हुई है।
  • जागरूकता का अभाव: जल संरक्षण को लेकर लोगों के बीच जागरूकता का अभाव है। जल का दुरुपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। भारतीय शहरों में जल संकट की समस्या चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है।

जल संकट का प्रभाव

  • कृषि संकट: भारत एक कृषि प्रधान देश है, और कृषि क्षेत्र जल की अत्यधिक आवश्यकता पर निर्भर है। भारत में जल, खाद्य सुरक्षा की कुंजी है। ऐसे में जल की कमी सिंचित क्षेत्रों को प्रभावित करेगी। जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन में कमी आएगी।
  • आर्थिक: उद्योगों को वर्ष 2030 तक वर्तमान खपत की तुलना में 3 गुना अधिक जल की आवश्यकता होगी, जिससे खाद्य और पेय पदार्थ, कपड़ा, कागज उत्पादों जैसे गहन उद्योगों के सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है। विश्व बैंक ने भरत में जल संकट के कारण जीडीपी के 6% तक की नुकसान की संभावना व्यक्त की है।
  • विद्युत आपूर्ति: जल की कमी भारत में बिजली पैदा करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। क्योंकि 40% थर्मल पावर प्लांट उन क्षेत्रों में स्थित है, जो जल की कमी का सामना कर रहे हैं।
  • पेयजल संकट: जल संकट से न केवल किसान प्रभावित होंगे, बल्कि भारत के शहरों और कस्बों के निवासियों को भी पीने के पानी की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ेगा।
  • प्रवासन: जल की कमी से आजीविका का संकट उत्पन्न होगा, जो अंततः प्रवासन को बढ़ावा देगा।
  • जैव विविधता: जल की कमी न केवल पेड़-पौधों बल्कि जीव-जंतुओं को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, जिससे जैव विविधता का संकट उत्पन्न होता है।
  • पानी को लेकर संघर्ष: भारत में कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी के जल, गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच नर्मदा के जल तथा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मध्य कृष्णा नदी जल के बटवारे को लेकर तनाव उत्पन्न होता रहता है।
  • कानून-व्यवस्था: जल संकट वाले क्षेत्रों में उपलब्ध जल स्रोतों पर कब्जे को लेकर कई हिंसक घटनाएँ होती है, तथा यह अस्थिरता का वातावरण पैदा कर सकता है।
  • जल संकट के सामधान के उपाय: सतत विकास लक्ष्य 6 के तहत वर्ष 2030 तक सभी लोगों के लिये पानी की उपलब्धता और स्थायी प्रबंधन सुनिश्चित किया जाना है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए जल संरक्षण के निम्नलिखित प्रयास किये जा रहे हैं।
  • जल प्रबंधन: भारत को दक्षिण-पश्चिम मानसून के माध्यम से पर्याप्त वार्षिक वर्षा प्राप्त होती है। हालांकि देश के अधिकांश क्षेत्रों में अभी भी जल की कमी मुख्य रूप से अक्षम जल प्रबंधन प्रथाओं के कारण है। इसलिए प्राकृतिक जल स्रोतों पर हो रहे अतिक्रमण को रोकना होगा तथा स्थानीय जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना होगा।
  • वेटलैंड्स को पुनर्स्थापित करना: शहरों में बाढ़ और पानी की कमी के मौजूदा दुष्चक्र से दूर रहने के लिए शहरी जलक्षेत्रों और वेटलैंड्स की बहाली जैसे प्रकृति आधारित समाधानों को अपनाना होगा ।
  • स्मार्ट सिटीज: भारत में स्मार्ट सिटीज की पहल, जल स्मार्ट और जलवायु अनुकूल शहरों के निर्माण तथा शहरी नियोजन तथा पारिस्थितिक तंत्र की बहाली के लिए एक एकीकृत शहरी जल प्रबंधन ढांचे को अपनाया जा सकता है।
  • वर्षा जल-संचयन: वर्षा जल संचयन को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए विशेषकर उन शहरों में जहां वर्षा जल का सतह अप्रवाह बहुत अधिक है। रूफ टॉप और रेनवाटर हार्वेस्टिंग जैसे उपायों के माध्यम से जल-संचयन तथा भूजल को रिचार्ज करने जैसी पहलों को अनिवार्य बनाना होगा।
  • ग्रीनहाउस गैस का प्रबंधन: शहरों के जल संकट से बचने के लिए सरकार और नागरिकों को ग्रीनहाउस गैस (GHGs) उत्सर्जन को कम करने संबंधी वैश्विक प्रयासों को समर्थन करने की आवश्यकता होगी।
  • नदियों का परस्पर जुड़ाव: नदियों का परस्पर जुड़ाव एक ऐसा विषय है, जिस पर देश में जल संकट के संभावित स्थायी समाधान हेतु वर्षो तक चर्चा और बहस हो रही है। योजना के पक्ष में उल्लिखित 3 प्राथमिक लाभ हैं-
  • सूखा से मुक्ति ।
  • प्रमुख नदियों में बाढ़ की समस्या से मुक्ति ।
  • अतिरिक्त 30,000 मेगावाट जल विद्युत उत्पन्न होने की संभावना ।

नदी बेसिन प्राधिकरण

राज्यों के बीच जानकारी साझा करने के लिए नदी बेसिन प्राधिकरण होना चाहिए, क्योंकि भारत की अधिकांश नदियाँ विभिन्न राज्यों से होकर गुजरती हैं।

सामुदायिक स्तर पर प्रबंधन

ग्रामीण स्तर पर तथा सामुदायिक आधार पर जल का विकेंद्रीकरण का प्रबंधन हो सकता है। जनसामान्य की सहभागिता तथा जिम्मेदारी के साथ नई पीढ़ी को जल संरक्षण के महत्व से परिचित कराना होगा।

आगे की राह

भारत में विश्व की 18% जनसंख्या निवास करती है, और इसके पास केवल 4% जल की उपलब्धता है। इसलिए भारत में जल संकट से निपटने के लिए मौजूदा जल संकट के बुनियादी कारणों को समझना होगा।

  • यदि हमें अपने देश में जल और खाद्य दोनों के संकट को रोकना हैं, तो देश में जल संरक्षण के कठोर कदम लागू करने की आवश्यकता होगी। नागरिकों द्वारा (विशेषकर शहरी क्षेत्रों में) जागरूकता में वृद्धि महत्वपूर्ण है।
  • कृषि पद्धतियों को नियोजित करना जैसे कि कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें लगाना, बिना लीकेज के सिंचाई प्रणाली स्थापित करना और कृषि आधारित जल संरक्षण संरचनाओं को विकसित करना बहुत महत्वपूर्ण है।
  • सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन जैसे उपायों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। जिससे जल की बर्बादी को रोककर जल का कुशलतम उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है। सरकार को इसके प्रोत्साहन हेतु कदम उठाने होंगे।

जल संकट से जुड़े कुछ प्रश्न:

प्रश्न: भारत में कितना प्रतिशत जल दूषित हैं?

उत्तर: भारत का 70% जल प्रदूषण से ग्रसित है।

प्रश्न: क्या जल संकट का कोई हल हैं?

उत्तर: जल संकट के हल हैं बस उन्हें अमल करने के लिए सरकार को तथा लोगो को मिल के काम करना होगा ।

निष्कर्ष:

उम्मीद करता हूँ की आपको यह लेख पसंद आया होगा तथा इस लेख (जल संकट क्या है) से आपको जरूर कुछ नया सीखने को मिला होगा। अगर इस लेख से जुड़े कोई सवाल या सुझाव हैं तो आप हमें नीचे कमेंट कर सकते है।

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