गोत्र क्या है, इतिहास,सप्तर्षी और गोत्र का संबंध, एक ही गोत्र में विवाह करने के नुकसान, कानून और संविधान की दृष्टि से गोत्र का महत्त्व, गोत्र का प्रयोग किन किन कार्यों में होता है, गोत्र कैसे पता करें, गोत्र पता करने की आवश्यकता क्यों है [ Gotra Kya Hai , Itihas, Saptarshi aur Gotra ka Sambandh, Ek Hi Gotra Mein Vivah Karne ke Nuksan, Kanun Aur Savindhan Ki Drishti Se Gotra Ka Mahatva, Varn Kya Hai, Gotra Ka Prayog Kin kin Karyo Mein Hota Hain, Gotra Kaise Pata Kare, Gotra Pata Karne ki AAvshykata Kyo Hai ]
मानव एक सामाजिक प्राणी है। एक सामान्य मनुष्य समाज के बनाए हुए नीति और नियमों का पालन करके ही, इस समाज में स्वयं को व्यवस्थित और अपने परिवार के मान-सम्मान को बनाए रख सकता है।
Contents
- 1 गोत्र का इतिहास क्या है? [ Gotra Ka Itihas Kya Hai ]
- 2 गोत्र क्या है [ Gotra Kya Hai ]
- 3 सप्तर्षी और गोत्र का क्या संबंध है? [ Saptarshi aur Gotra ka kya Sambandh Hai ]
- 4 एक ही गोत्र में विवाह करने के नुकसान क्या है? [ Ek Hi Gotra Mein Vivah Karne ke Nuksan Kya Hai ]
- 5 कानून और संविधान की दृष्टि से गोत्र का क्या महत्त्व है [ Kanun Aur Savindhan Ki Drishti Se Gotra Ka kya Mahtva Hai ]
- 6 वर्ण क्या है [ Varn Kya Hai ]
- 7 गोत्र का प्रयोग किन किन कार्यों में होता है? [ Gotra Ka Prayog Kin kin Karyo Mein Hota Hai ]
- 8 गोत्र कैसे पता करें? [ Gotra Kaise Pata Kare ]
- 9 गोत्र पता करने की आवश्यकता क्यों है? [ Gotra Pata Karne ki AAvshykata Kyo Hai ]
गोत्र का इतिहास क्या है? [ Gotra Ka Itihas Kya Hai ]
आज से लगभग 1000 ईसा पूर्व में गोत्र प्रथा अस्तित्व में आया प्रत्येक गोत्र किसी ऋषि के नाम पर होता था। उस गोत्र के सदस्य उसी ऋषि के वंशज माने जाते थे। एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह नहीं कर सकते थे। विवाह के पश्चात स्त्रियों का गोत्र, पिता के स्थान पर पति का गोत्र माना जाता था। पुत्र के आगे माता का गोत्र होता था। उदाहरण के लिए- सातवाहन इसके अपवाद कहे जा सकते हैं। गौतमीपुत्र सातकर्णि के विवाह के पश्चात भी सातवाहन रानियों ने अपने पति के स्थान को पिता के गोत्र को ही अपनाया।
गोत्र क्या है [ Gotra Kya Hai ]
गोत्र भी प्राचीन मानव समाज द्वारा बनाए गए रीति-रिवाजों का ही हिस्सा है, जो यह निर्धारित करता है एक व्यक्ति किस पूर्वज की संतान है। मूल रूप से एक वंश के सभी वंशज, किसी एक पूर्वज से जुड़े हुए हैं।
सप्तर्षी और गोत्र का क्या संबंध है? [ Saptarshi aur Gotra ka kya Sambandh Hai ]
मान्यताओं के अनुसार हम सभी ऋषि मुनियों की संतान है धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मुख्य रूप से सप्तर्षियों के नाम के आधार पर सात गोत्र का प्रचलन था-
- अत्री
- भारद्वाज
- भृगु
- गौतम
- कश्यप
- वशिष्ठ
- विश्वामित्र।
लेकिन समय के साथ-साथ ये बढ़ते गए और आज सभी गोत्रों की संख्या लगभग 115 हो गई है। एक समान गोत्र वाले लोग आगे चलकर के किसी एक ही ऋषि की संतान होने के कारण भाई-बहन समझे जाने लगे। मुख्य रूप से यही कारण है कि एक समान गोत्र वाले स्त्री-पुरुष का विवाह पाप समझा जाने लगा। समाज की दृष्टि से एक समान गोत्र के लड़का और लड़की का रिश्ता भाई-बहन का होता है, और उनका आपस में विवाह करना सामाजिक दृष्टि से दंडनीय होता था।
एक ही गोत्र में विवाह करने के नुकसान क्या है? [ Ek Hi Gotra Mein Vivah Karne ke Nuksan Kya Hai ]
एक ही गोत्र में विवाह न करने के पीछे एक कारण यह भी है, कि एक ही गोत्र में विवाह करने से संतान में अनुवांशिक दोष आने का भय अधिक रहता है; जो कि आज का मेडिकल साइंस भी कहता है। एक ही गोत्र में शादी होने के कारण संतान में गुण, शारीरिक गुण, व्यवहारिक गुण में कुछ नया नहीं आ पाता है। और सब कुछ वही होता है, यानी जो रोग पहले से माता-पिता को होगा। वही रोग संतान को भी हो सकता है। जितनी बुद्धि मां बाप की होगी, उतनी ही उनकी संतान की भी होगी। इसलिए कुछ नया नहीं मिल पाता है।
कानून और संविधान की दृष्टि से गोत्र का क्या महत्त्व है [ Kanun Aur Savindhan Ki Drishti Se Gotra Ka kya Mahtva Hai ]
कानून और संविधान की दृष्टि में गोत्र, वर्ण और जाति विवाह के लिए कोई बंधन नहीं रखा गया है। इसीलिए कानून किसी भी एक गोत्र में विवाह करने की अनुमति को मान लेता है, लेकिन समाज एक ही गोत्र, वर्ण और जाति में विवाह की अनुमति नहीं देता है। कानून के इस फैसले में, समाज कभी भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
वर्ण क्या है [ Varn Kya Hai ]
कहा जाता है कि गोत्र पहले आया और वर्ण का विस्तार बाद में हुआ। मनुष्य के कर्म और गुणों के आधार पर इन्हें चार वर्गों में बांटा गया है-
- ब्राह्मण
- क्षत्रिय
- वैश्य
- शूद्र यानी की दलित।
इन सभी वर्णों को प्रमुख जातियां भी कहा गया है। इन सभी जातियों में गोत्र भी समान रूप से पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि वर्ण व्यवस्था के अनुसार व्यक्ति के गुण, कर्म और व्यवहार जिस वर्ण से संबंध रखते थे, उसे उस वर्ण का हिस्सा बना दिया गया। चाहे वह किसी भी गोत्र से संबंध क्यों न रखता हो। यही कारण है कि कौशिक ब्राह्मण हैं और क्षत्रिय भी, कश्यप गोत्रिय ब्राह्मण भी है और राजपूत भी और पिछड़ी जाति वाले भी हैं।
गोत्र का प्रयोग किन किन कार्यों में होता है? [ Gotra Ka Prayog Kin kin Karyo Mein Hota Hai ]
मुख्य रूप से गोत्र का प्रयोग विवाह संबंध स्थापित करते समय और सभी प्रकार के धार्मिक कार्य जैसे- कि विशेष पूजा, अनुष्ठान, गृह प्रवेश, हवन, यज्ञ इत्यादि के समय किया जाता है। विवाह में लड़का लड़की और उनके माता और दादी का गोत्र मिलान किया जाता है। इनमें से किसी एक गोत्र में भी समानता होने पर विवाह संभव नहीं माना जा सकता।
गोत्र कैसे पता करें? [ Gotra Kaise Pata Kare ]
अपने गोत्र के विषय में एक व्यक्ति को जानकारी उसके परिवार के बड़े-बूढ़ों से मिलती है। इसलिए अपने गोत्र के विषय में पता करने का और इस परंपरा को अपने वंश तक पहुंचाने का एकमात्र तरीका यही है कि आप अपने बड़े बूढ़ों से गोत्र के विषय में पता करके अपने पुत्र और पुत्री से यह साझा करें। यदि आपके परिवार में कोई बड़े बुजुर्ग नहीं है, और आप इस विषय में अपने आसपास के लोगों से जानकारी ले सकते हैं। जैसे कि यदि आप गांव के रहने वाले हैं, तो अक्सर ऐसा होता कि गांव में अधिकांश भाग एक ही गोत्र के होते हैं। ऐसी स्थिति में आप आसानी से अपने आसपास के लोगों से अपना गोत्र पता कर सकते हैं।
कभी-कभी ऐसा होता है कि आपके पूर्वज 40 से 50 वर्षों से शहर में रहने लगे हैं। ऐसे में आप पहले यह पता करने की कोशिश करें कि आपके पूर्वज किस गांव के रहने वाले थे। उस गांव में जाकर के आसपास के लोगों से गोत्र के विषय में जानकारी ले सकते हैं। इस सबके अलावा ऐसी कोई ज्योतिष विद्या प्रचलन में नहीं है, जिससे आपको आपके गोत्र के विषय में जानकारी दी जा सके। अपने गोत्र के विषय में पता करने के लिए आपको स्वयं ही प्रयास करना होगा।
गोत्र पता करने की आवश्यकता क्यों है? [ Gotra Pata Karne ki AAvshykata Kyo Hai ]
अपने गोत्र के विषय में जानने से आप बहुत कुछ जान सकते हैं, कि आपके पुर्वजों का इतिहास क्या रहा है? और उनकी खास बात क्या रहा है? आपके गोत्र के लोगों ने पहले क्या किया है? उनकी खूबी क्या रही है? यह सभी जानकारी आपको मिल सकती हैं।
प्रश्न: हिंदू धर्म में कितने गोत्र होते हैं?
उत्तर: हिन्दू धर्म में चार गोत्र होते हैं
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